Hindi Ki Janpadiya Kavita

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Hindi Ki Janpadiya Kavita
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जनपदीय कविताओं के इस संकलन को प्रस्तुत करने का एक उद्देश्य यह भी समझा जा सके कि सहज होना कठिन तो है और कृत्रिम होकर सहज होना तो और कठिन है, पर हिन्दी में सहजता उसके भीतर ही अनेक रूपों में पुरइन-पात की तरह पसरी हुई है। उससे अपरिचित होना हिन्दी के लिए गौरव की बात नहीं है। हिन्दी पाठ्यक्रम में लोग तर्क देते हैं कि हिन्दीतर भाषियों के लिए हिन्दी के इतने रूप देना उचित नहीं। यह तर्क लचर है। साहित्य, कोश रखकर नहीं लिखा जाता, न कोई निर्धारित साँचा रखकर लिखा जाता है। साहित्य की भाषा साँचों को तोड़ती है, नए साँचे बनाती है। साहित्य की भाषा ही जीवन्त मानकों का नक़्शा देती है। यह तभी सम्भव होता है जब साहित्य की भाषा में आदान-प्रदान भीतर-बाहर से हो। यदि हिन्दी अपनी अभ्यन्तर शक्ति से अपरिचित रह जाए तो केवल बाहरी प्रभाव को लेकर वह चल नहीं सकती, चलेगी भी तो एक छोटे से वर्ग की भाषा रह जाएगी। हिन्दी की इस अभ्यन्तर शक्ति के विस्तार का निदर्शन इस संकलन में है। इसके संकलनकर्त्ता इन भाषाओं के रचनाकार भी हैं और इनके सुप्रसिद्ध अध्येता भी हैं। प्रत्येक ने अपने-अपने ढंग से भूमिका भी लिखी है।...

हर संग्रह की अपनी सीमा होती है, इसकी भी है, पर यह एक शुरुआत है। मुझे विश्वास है कि महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय का यह आरम्भ शुभ होगा।

—विद्यानिवास मिश्र

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Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 2018, Ed. 2nd
Pages 727p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
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Vidhyaniwas Mishra

Author: Vidhyaniwas Mishra

डॉ. विद्यानिवास मिश्र

जन्म : 28 जनवरी, 1926; गाँव—पकड़डीहा, ज़िला—गोरखपुर। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में, माध्यमिक शिक्षा गोरखपुर में, संस्कृत की पारम्परिक शिक्षा घर पर और वाराणसी में। 1945 में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए.। हिन्दी साहित्य सम्मेलन में स्वर्गीय राहुल की छाया में कोश-कार्य, फिर पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी की प्रेरणा से आकाशवाणी में कोश-कार्य, विंध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सूचना विभागों में सेवा, गोरखपुर विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय और आगरा विश्वविद्यालयों में क्रमशः अध्यापन संस्कृत और भाषा-विज्ञान का। 1960-61 और 1967-68 में कैलिफ़ोर्निया और वाशिंगटन विश्वविद्यालयों में अतिथि अध्यापक। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के निदेशक; काशी विद्यापीठ तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति-पद से निवृत्त होने के बाद कुछ वर्षों के लिए नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली के सम्पादक भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘शेफाली झर रही है’, ‘गाँव का मन’, ‘संचारिणी’, ‘लागौ रंग हरी’, ‘भ्रमरानन्द के पत्र’, ‘अंगद की नियति’, ‘छितवन की छाँह’, ‘कदम की फूली डाल’, ‘तुम चन्दन हम पानी’, ‘आँगन का पंछी और बनजारा मन’, ‘मैंने सिल पहुँचाई’, ‘साहित्य की चेतना’, ‘बसन्त आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं’, ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’, ‘परम्परा बन्धन नहीं’, ‘कँटीले तारों के आर-पार’, ‘कौन तू फुलवा बीननि हारी’, ‘अस्मिता के लिए’, ‘देश, धर्म और साहित्य’ (निबन्ध-संग्रह); ‘दि डिस्क्रिप्टिव टेकनीक ऑफ़ पाणिनि’, ‘रीतिविज्ञान’, ‘भारतीय भाषा-दर्शन की पीठिका’, ‘हिन्दी की शब्द-सम्पदा’ (शोध); ‘पानी की पुकार’ (कविता-संग्रह); ‘रसखान रचनावली’, ‘रहीम ग्रन्थावली’, ‘देव की दीपशिखा’, ‘आलम ग्रन्थावली’, ‘नई कविता की मुक्तधारा’, ‘हिन्दी की जनपदीय कविता’ (सम्पादित)।

निधन : 14 फ़रवरी, 2005

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