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Buddhiprakash

Author: Sampat Saral
Edition: 2025, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Buddhiprakash

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सम्पत सरल को ज़्यादातर लोग मंच से जानते हैं जहाँ वे पिछले कई वर्षों से उल्लेखनीय निडरता के साथ न सिर्फ़ समाज, बल्कि सरकार को भी आईना दिखाते रहे हैं।

‘बुद्धिप्रकाश’ उनके व्यंग्य निबन्धों की पुस्तक है; और इन्हें पढ़कर कोई भी कहेगा कि जिस धारदार, सधे और सुँते हुए व्यंग्य की कमी हिन्दी में काफ़ी समय से खल रही थी, वह अब हमारे सामने है।

हमारे आसपास ऐसी बहुत कम चीज़ें रह गई होंगी, जिन्हें व्यंग्य का विषय बनाते हुए किसी को कोई संकोच हो; जीवन का, सामाजिक व्यवस्था का अधिकांश अपने विरोधाभासों के चलते स्वयं ही व्यंग्य है। लेकिन चीज़ों के बाह्य आडम्बरों, शक्ति और सामर्थ्य की अभेद्य भंगिमाओं और रंध्रहीन व्यवस्था को बेधकर उनके भीतर के व्यंग्य को पकड़ना—इसके लिए एक निगाह चाहिए, जो सम्पत सरल के पास है; और उसे बिना किसी लाग-लपेट के साफ़-साफ़ उकेर देनेवाली भाषा भी।

इस संकलन में शामिल निबन्धों को पढ़ते हुए जो चीज़ सबसे पहले महसूस होती है वह यही कि वे अपनी एक भी पंक्ति को व्यर्थ नहीं जाने देते; हर वाक्य सही निशाने पर जाकर लगता है; और हर बात अपने अनूठेपन में हमें नई लगती है। हास्य उनके व्यंग्य के साथ स्वयं चला आता है, अनायास, एक साथ कई दिशाओं में मार करता हुआ, जैसे कि उन्होंने अपने इस समय को सांगोपांग समझ लिया हो।

यह पुस्तक आपको बार-बार अपने पास बुलाएगी।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2025
Edition Year 2025, Ed. 1st
Pages 200p
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Sampat Saral

Author: Sampat Saral

सम्पत सरल

अपने तीखे वैचारिक व्यंग्यों से सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियों को उजागर करने वाले सम्पत सरल का जन्म 8 अप्रैल, 1962 को गाँव मणकसास, झुंझनू, राजस्थान में हुआ। वे हिन्दुस्तानी व्यंग्य लेखकों में अपनी अलग पहचान रखते हैं। दुःख और करुणा को हँसते हुए रचना बना देने का फ़न बहुत मुश्किल है, लेकिन उन्होंने इसे न सिर्फ़ बड़ी सरलता से साधा है, बल्कि नए मुहावरों और नए प्रतीकों के साथ व्यंग्य की नई ज़मीन भी खोजी है।

लेखन और वाचन दोनों माध्यमों से हिन्दी व्यंग्य को वैश्विक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सम्पत सरल को पढ़-सुनकर हठात् जो मुस्कान उभरती है, वह भीतर तक उद्वेलित भी करती है।

ई-मेल : sampatsaralshow@gmail.com

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