अब कहाँ आँसू हैं उसके नाम के
ज़ब्त मैं जाने कहाँ से लाई हूँ
मालवी मल्होत्रा यूँ तो एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री हैं, सिने-स्क्रीन का एक जाना-पहचाना चेहरा, लेकिन इसके अलावा वे एक संजीदा ग़ज़लगो भी हैं। यह उनकी ग़ज़लों की किताब है जिसमें ग़मे-दौराँ और ग़मे-जानाँ को एक साथ समेटने वाली उनकी कुछ यादगार ग़ज़लें शामिल हैं।
प्रेम की अलग-अलग मनःस्थितियों और अहसासात को शे’रों में पिरोते हुए ये ग़ज़लें हमें मजबूर करती हैं कि हम उन्हें बार-बार पढ़ें। एक शे’र देखें,
दग़ा वो ज़माने को आया था देकर
मगर शर्म से थी मैं क्यों पानी-पानी
इसी तरह के कई शे’र इन ग़ज़लों में आपके सामने बार-बार आते हैं जिनमें इश्क़ का पारम्परिक फ़्रेम अपनी हदों को बढ़ाता दिखता है।
कुछ ग़ज़लें यहाँ ऐसी भी हैं जो समाज और आसपास के मौजूदा हालात की तरफ़ हमारा ध्यान खींचती हैं; मसलन कोरोना के दौर के हवाले से लिखी गई ग़ज़लें और क़ौमी एकता की ज़रूरत को रेखांकित करती ग़ज़लें।
Language | Hindi |
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Binding | E Book |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2025 |
Edition Year | 2025, Ed. 1st |
Pages | 144p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |