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Nangatalai Ka Gaon-Paper Back

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‘नंगातलाई का गाँव’—इस ‘स्मृति-आख्यान’ में डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी अपने दो लेखकीय रूपों में उपस्थित हैं। पहला—अपनी जीवनी के क़िस्सागो अर्थात् नंगातलाई और दूसरा—इस आख्यान के सजग लेखक यानी बिसनाथ। इस विलक्षण जुगलबन्दी के कारनामे में ‘आत्म’ लेखक का है और ‘कथा’ बिस्कोहर के बहाने भारतीय ग्रामीण जीवन सभ्यता की। ‘आत्म-व्यंग्य’ के कठिन शिल्प में दु:ख को मज़े लेकर कहने का करिश्मा जिस निरायास ढंग से सम्भव हुआ है उससे निराला, परसाई और नागार्जुन का स्मरण हो आता है।

दस अध्यायों में बमुश्किल समाहित बिस्कोहर कथा में लेखक ने पं. जगदम्बा पांडे जगेश, लक्खाबुआ, बल्दी बनिया, जनक दुलारी, सुग्गनजान, नदवी साहब, कृष्ण मोहम्मद, नैपाले, माने, अम्मा-दादा से लेकर अनेक अविस्मरणीय पात्रों का जो यथार्थ पुनर्सृजन किया है और उसमें उपस्थित-जागृत आम कुँजड़ा, बेड़नी, बनिया, मौलवी, भंगी, ठाकुर, ब्राह्मण आदि वर्ग के जय-पराजय, दु:ख-सुख, हास-परिहास, प्रेम-घृणा, मान-अभिमान, क्रोध-प्रसन्नता, विनम्रता-अहंकार आदि का सजीव उद्घाटन जिस निर्वैयक्तिता में किया है, वह आत्मकथा के आभिजात्य से मुक्ति का ऐसा बिन्दु है जिसमें नंगातलाई की यह कथा महाकाव्यात्मक गाथा के क़रीब पहुँच जाती है।

इस कालजयी आख्यान में लोक-सौन्दर्य के स्वाभिमान से पगी ऐसी सजल भाषा है जो शोख़, तीखी, मीठी, चोट खाई, लचीली और विदग्ध है। शब्द यहाँ अनेक अदेखी अनूठी भंगिमाओं में अर्थों का नया संसार रचते हैं। शब्दों की विपन्नता के रुदन के बीच यह किताब एक ऐसे आधार ग्रन्थ की तरह है जिसमें पूरबी अवधी का अजाना समृद्ध भाषा-संसार है।

प्रस्तुत कृति चूँकि लेखक के दो रूपों (जीवनीकार, आत्मकथा-लेखक) से बने प्रयोगधर्मी शिल्प में अपना कथा-विन्यास पाती है, अतः उसमें अतीत से लेकर भूमंडलीकरण तक के प्रभावों का यथार्थ इन्दराज है।

डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने स्मृति आख्यान की विधा के गौरव को जिस तरह पुनर्स्थापित किया है, वह हमारे समय की अनूठी और अप्रतिम साहित्यिक उपलब्धि मानी जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

—लीलाधर मंडलोई

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2012
Edition Year 2016, Ed. 2nd
Pages 143p
Price ₹150.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 0.5
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Vishwanath Tripathi

Author: Vishwanath Tripathi

विश्वनाथ त्रिपाठी

विश्वनाथ त्रिपाठी का जन्म 16 फरवरी, 1931 को उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती (अब सिद्धार्थनगर) के बिस्कोहर गाँव में हुआ। आरम्भिक शिक्षा पहले गाँव में, फिर बलरामपुर कस्बे में। उच्च शिक्षा कानपुर और वाराणसी में। पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से पी-एच.डी.।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘प्रारम्भिक अवधी’, ‘हिन्दी आलोचना’, ‘हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास’, ‘लोकवादी तुलसीदास’, ‘मीरा का काव्य’, ‘देश के इस दौर में’ (हरिशंकर परसाई केन्द्रित); ‘पेड़ का हाथ’ (केदारनाथ अग्रवाल केन्द्रित) (इतिहास-आलोचना); ‘जैसा कह सका’ (कविता-संकलन); ‘नंगातलाई का गाँव’, ‘बिसनाथ का बलरामपुर’ (स्मृति-आख्यान); ‘व्योमकेश दरवेश’ (आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का पुण्य स्मरण), ‘गुरुजी की खेती-बारी’ (संस्मरण)। उन्‍होंने आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के साथ अद्दहमाण (अब्दुल रहमान) के अपभ्रंश काव्य ‘सन्देश रासक’ का सम्पादन किया। ‘कविताएँ 1963’, ‘कविताएँ 1964’, ‘कविताएँ 1965’ (तीनों अजित कुमार के साथ), ‘हिन्दी के प्रहरी : रामविलास शर्मा’ (अरुण प्रकाश के साथ) का भी सम्पादन किया।

उन्हें ‘मूर्तिदेवी सम्मान’, ‘व्यास सम्मान’, ‘आकाशदीप सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘शलाका सम्मान’, ‘भारत भारती पुरस्कार’, ‘राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’, ‘राजकमल प्रकाशन सृजनात्मक गद्य सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘गोकुलचन्द्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार’, ‘डॉ. रामविलास शर्मा सम्मान’, हिन्दी अकादमी के ‘साहित्यकार सम्मान’ आदि से सम्मािनत किया गया है।

सम्पर्क : बी-5, एफ-2, दिलशाद गार्डन, दिल्ली-45

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