परसाई जी पर आपकी किताब मिल गई और पढ़ ली गई। अपने देश व समाज से,
मानवता से आप जिस गहराई तक जुड़े हैं, उस पर अचम्भा होता है। आपके लेखन से ताक़त
मिलती है। बहुत-सी चीज़ें साफ़ होती हैं। परसाई जी का मैं प्रशंसक हूँ आज से नहीं, बहुत पहले से।
हिन्दी में आज तक ऐसा हास्य-व्यंग्यकार नहीं हुआ। आपने बहुत बड़ा काम किया है। परसाई जी की
जीवनी और कृतित्व दोनों को मिलाकर एक पुस्तक लिखी जानी चाहिए।
—अमरकान्त
परसाई पर विश्वनाथ त्रिपाठी ने पहली बार गम्भीरता से विचार किया है। यह अभी तक की एक
अनुपम और अद्वितीय पुस्तक है, जिसमें परसाई के रचना-संसार को समझने और उद्घाटित करने
का प्रयास किया गया है।
—ज्ञानरंजन
परसाई का लेखन डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी के चिन्तन के क़रीब पड़ता है। वे अपने चिन्तन को परसाई
की रचना से पुष्ट और समृद्ध करते हैं। परसाई जी के निबन्धों की उन्होंने बहुत तरह से, बहुत
कोणों से जाँच-पड़ताल की है—वर्तमानता की दृष्टि से, मनोविकारों की दृष्टि से, कला की दृष्टि से
और रूप की दृष्टि से।
—बलीसिंह
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1989 |
Edition Year | 2000, Ed. 2nd |
Pages | 111p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |