Facebook Pixel

Nahin-Hard Cover

Special Price ₹212.50 Regular Price ₹250.00
15% Off
Out of stock
SKU
9788126717262
Share:
Codicon

अपने ऐतिहासिक समय को वंचित मनुष्यता की पीड़ा और संघर्ष के गहरे सरोकारों की केन्द्रीयता के साथ परिभाषित करती कविता का यह संकलन ‘नहीं’ यथार्थ की द्वन्द्वात्मकता को उन बिन्दुओं पर सृजन के अनुभवों में बदलता है, जहाँ यथास्थिति के निषेध में नई और सच्ची मानव-निर्मितियों की आकांक्षा और सम्भावनाएँ एकत्र होकर क्रियाशील होती हैं। पंकज सिंह की इन कविताओं की दृष्टिसम्पन्नता और आशय इन्हें कोरे नकार की निष्फलता से बचाकर संवेदना की उस मनोभूमि में ले जाते हैं जो ‘नहीं’ की पवित्र दृढ़ता से अनन्त सम्भावनाओं की प्रक्रिया और उसकी सहज-अबाध परिणतियों के प्रकट होते जाने की आश्वस्ति देती है।

पंकज सिंह ने अपने पिछले काव्य-संग्रहों, ‘आहटें आसपास’ और ‘जैसे पवन पानी’, की कविताओं में सार्थक जोखिम उठाते हुए भारतीय समाज में पिछली शताब्दी के सातवें दशक की ‘वसन्त गर्जना’ से उत्प्रेरित प्राण-शक्ति को भाषा में अनूठे रूपाकार दिए। अन्याय की सत्ताओं के बरक्स सांस्कृतिक संरचना में प्रतिरोध के साहस की अभिव्यक्ति और परिवर्तन के महास्वप्न की अर्थ-सक्रियता उन कविताओं की उदग्र पहचान बनी। उन तत्त्वों से हिन्दी में अनुभव-सघन तथा अभिप्राय की गरिमा से भरी जिस मौलिक राजनीतिक कविता को पंकज सिंह के कवि ने सम्भव किए उसके नए और कदाचित् अधिक क्षिप्र रूप भी, ‘नहीं’ की कविताओं में हैं।

इन कविताओं में अनुभव-अनुकूलित शिल्प का सुघड़पन है और कहन के ऐसे अनेक लहज़े हैं जो काव्य-औज़ारों, हिकमतों और समग्र प्रविधि के मामले में हिन्दी काव्य के नए विस्तार के सूचक हैं।

‘नहीं’ की कविताओं की जीवन्त अनुभव-राशि में अगर अन्तर्विरोधों और द्वन्द्वों में शामिल विडम्बनाएँ और कई प्रकार के सामूहिक बोध के समुच्चय हैं, तो निजी आवेग-संवेग, प्रेम और आसक्ति, आघात-संघात और अवसाद-विषाद भी हैं जो पंकज सिंह की कविताओं में व्यापक और तीव्र संवेदकों की उपस्थिति को गहराई देनेवाली चीज़ें हैं, और इस अर्थ में चकित करनेवाली भी कि वे तर्क और विवेक की शक्लें अख़्तियार करके सार्वजनिक संलाप का हिस्सा मालूम होने लगती हैं।

अगर काव्य के कुछ शाश्वत मापक होते हों तो उनके सम्मुख भी ‘नहीं’ की जीवन-विश्वासी कविता सार्थक और सामाजिक-सांस्कृतिक उपयोग की बनी रहेगी, क्योंकि इसकी आत्मा में करुणा और प्रेम की सुनिश्चित लय है और वह उसी महास्वप्न से आबद्ध-प्रतिबद्ध है जो उसे जीवन और भाषा में चतुर्दिक फैले विचलनों के बीच सन्तुलित और ऊर्जस्व बनाए हुए है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Edition Year 2009
Pages 120p
Price ₹250.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Nahin-Hard Cover
Your Rating
Pankaj Singh

Author: Pankaj Singh

पंकज सिंह

मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) में जन्म और पैतृक गाँव चैता (पूर्वी चम्पारण) में स्कूली शिक्षा का आरम्भ। इतिहास में बी.ए. ऑनर्स और एम.ए. (बिहार विश्वविद्यालय)। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वियतनाम के संघर्ष पर शोध।

क्रान्तिकारी वाम राजनीति और पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय। पहली कविता 1966 में प्रकाशित। रचनात्मक लेखन के अतिरिक्त राजनीति और साहित्य-कला-संस्कृति पर निबन्ध और समीक्षा आदि चर्चित। कई वर्षों तक ‘जनसत्ता’ में नियमित कला-समीक्षा और ‘नवभारत टाइम्स’ में एक वर्ष तक साप्ताहिक स्तम्भ ‘विमर्श’ उल्लेखनीय। फ़्रेंच एनसाइक्लोपीडिया ‘लारूस्’ में हिन्दी साहित्य पर टिप्पणी। अनेक पांडुलिपियों का सम्पादन। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, एन.सी.ई.आर.टी. और साहित्य अकादेमी आदि के लिए अनुवाद। डॉक्यूमेंटरी और कथा फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन। डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी। रेडियो और टेलीविज़न के प्रसारक और प्रस्तोता के रूप में बहुख्यात। सम्पादक की हैसियत से दूरदर्शन समाचार, ब्रिटिश उच्चायोग और कई पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्ध रहे। पेरिस के पौर्वात्य भाषा और सभ्यता संस्थान तथा सीपा प्रेस इंटरनेशनल के भारतीय विभागों में काम किया। बी.बी.सी. लंदन की विश्व सेवा में साढ़े चार वर्ष तक प्रोड्यूसर।

प्रकाशन : ‘आहटें आसपास’ (1981), ‘जैसे पवन पानी’ (2001), ‘नहीं’ (2009)। अनेक देशी-विदेशी संकलनों में कविताएँ। उर्दू, बांग्ला, अंग्रेज़ी, जापानी, रूसी तथा फ्रेंच आदि में कविताओं के अनुवाद।

प्रवास : पेरिस (1978-80), लंदन (1987-91)। अनेक एशियाई-यूरोपीय देशों की यात्राएँ। यात्राओं और प्रवास के दौरान विश्वविद्यालयों और सांस्थानिक आयोजनों में व्याख्यान और काव्य-पाठ। पेरिस के अन्तरराष्ट्रीय कविता उत्सव में भारत का प्रतिनिधित्व।

दिल्ली में रहते हुए समकालीन बौद्धिक-सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में सक्रिय। ‘जन हस्तक्षेप’ नामक संगठन के संस्थापक सदस्य और उसके कार्यक्रमों में निरन्तर भागीदारी। लेखन के अतिरिक्त फ़िल्म और मीडिया परामर्श के क्षेत्रों में गतिशील।

निधन : 26 दिसम्‍बर, 2015

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top