‘जैसे पवन पानी’ की कविताएँ निजी और अन्तरंग अनुभवों को भी इस तरह व्यक्त करती हैं कि मनुष्य, समाज और सभ्यता की हालत का वर्णन, उसका एक ज़रूरी विमर्श बन जाते हैं। संग्रह की कविताएँ पवन, पानी के माध्यम से उस पर्यावरण के भीतर पहुँचती हैं जहाँ मानवीय संवेदनाएँ पीड़ित हैं, वध्य हैं।

समकालीन राजनीति, सामाजिक और नैतिक परिदृश्य में इस संग्रह की कविताएँ मानवीय अस्तित्व के संरक्षण के लिए एक असमाप्त संघर्ष करती प्रतीत होती हैं। इन कविताओं में प्रतिरोध को दर्ज करने की जो क्षमता है, उसकी बदौलत कवि का आत्मालाप एक सार्वजनिक सन्ताप में बदल जाता है। संवेदना का वैचारिक पक्ष और निजता का यही सार्वजनिक रूपान्तरण पंकज सिंह की कविताओं को एक विशिष्ट व्यक्तित्व और विरल अर्थ प्रदान करते हैं।

‘जैसे पावन पानी’ की कविताओं में मानवीय आवेग और अवसाद रूपान्तरित होते हैं तर्क और विवेक के विविध रूपों में, जिससे एक समूची पीढ़ी की तरफ़ से संवेदनाओं को बचाने की उनकी गहरी चिन्ता और छटपटाहट एक वक्तव्य के रूप में प्रकट होती है। पवन-पानी जैसा बुनियादी और जैविक क़िस्म का यह प्रयास पंकज सिंह की कविताओं में आत्मसंघर्ष से लेकर जनसंघर्ष तक की स्थितियों में जारी रहता है। इस संग्रह की प्रेम कविताओं में यह मन्तव्य निहित है कि एक भयावह समय में प्रेम करना इस संसार को बचाए रखना है।

यह ग़ौरतलब है कि अच्छी राजनीतिक कविताएँ लिखना प्रायः कठिन माना जाता है मगर पंकज सिंह एक सार्थक जोखिम उठाते हुए राजनीति को कविता से ओझल नहीं होने देते, बल्कि कई आयामों से गुज़रते अपनी भाषा में एक नया अर्थ प्रदान करते हैं जो इस संग्रह की एक बहुत बड़ी विशेषता है।

More Information
Language Hindi
Publication Year 2001
Edition Year 2001, Ed. 1st
Pages 127p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Pankaj Singh

Author: Pankaj Singh

पंकज सिंह

मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) में जन्म और पैतृक गाँव चैता (पूर्वी चम्पारण) में स्कूली शिक्षा का आरम्भ। इतिहास में बी.ए. ऑनर्स और एम.ए. (बिहार विश्वविद्यालय)। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वियतनाम के संघर्ष पर शोध।

क्रान्तिकारी वाम राजनीति और पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय। पहली कविता 1966 में प्रकाशित। रचनात्मक लेखन के अतिरिक्त राजनीति और साहित्य-कला-संस्कृति पर निबन्ध और समीक्षा आदि चर्चित। कई वर्षों तक ‘जनसत्ता’ में नियमित कला-समीक्षा और ‘नवभारत टाइम्स’ में एक वर्ष तक साप्ताहिक स्तम्भ ‘विमर्श’ उल्लेखनीय। फ़्रेंच एनसाइक्लोपीडिया ‘लारूस्’ में हिन्दी साहित्य पर टिप्पणी। अनेक पांडुलिपियों का सम्पादन। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, एन.सी.ई.आर.टी. और साहित्य अकादेमी आदि के लिए अनुवाद। डॉक्यूमेंटरी और कथा फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन। डॉक्यूमेंटरी फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन भी। रेडियो और टेलीविज़न के प्रसारक और प्रस्तोता के रूप में बहुख्यात। सम्पादक की हैसियत से दूरदर्शन समाचार, ब्रिटिश उच्चायोग और कई पत्र-पत्रिकाओं से सम्बद्ध रहे। पेरिस के पौर्वात्य भाषा और सभ्यता संस्थान तथा सीपा प्रेस इंटरनेशनल के भारतीय विभागों में काम किया। बी.बी.सी. लंदन की विश्व सेवा में साढ़े चार वर्ष तक प्रोड्यूसर।

प्रकाशन : ‘आहटें आसपास’ (1981), ‘जैसे पवन पानी’ (2001), ‘नहीं’ (2009)। अनेक देशी-विदेशी संकलनों में कविताएँ। उर्दू, बांग्ला, अंग्रेज़ी, जापानी, रूसी तथा फ्रेंच आदि में कविताओं के अनुवाद।

प्रवास : पेरिस (1978-80), लंदन (1987-91)। अनेक एशियाई-यूरोपीय देशों की यात्राएँ। यात्राओं और प्रवास के दौरान विश्वविद्यालयों और सांस्थानिक आयोजनों में व्याख्यान और काव्य-पाठ। पेरिस के अन्तरराष्ट्रीय कविता उत्सव में भारत का प्रतिनिधित्व।

दिल्ली में रहते हुए समकालीन बौद्धिक-सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में सक्रिय। ‘जन हस्तक्षेप’ नामक संगठन के संस्थापक सदस्य और उसके कार्यक्रमों में निरन्तर भागीदारी। लेखन के अतिरिक्त फ़िल्म और मीडिया परामर्श के क्षेत्रों में गतिशील।

निधन : 26 दिसम्‍बर, 2015

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