‘जैसे पवन पानी’ की कविताएँ निजी और अन्तरंग अनुभवों को भी इस तरह व्यक्त करती हैं कि मनुष्य, समाज और सभ्यता की हालत का वर्णन, उसका एक ज़रूरी विमर्श बन जाते हैं। संग्रह की कविताएँ पवन, पानी के माध्यम से उस पर्यावरण के भीतर पहुँचती हैं जहाँ मानवीय संवेदनाएँ पीड़ित हैं, वध्य हैं।
समकालीन राजनीति, सामाजिक और नैतिक परिदृश्य में इस संग्रह की कविताएँ मानवीय अस्तित्व के संरक्षण के लिए एक असमाप्त संघर्ष करती प्रतीत होती हैं। इन कविताओं में प्रतिरोध को दर्ज करने की जो क्षमता है, उसकी बदौलत कवि का आत्मालाप एक सार्वजनिक सन्ताप में बदल जाता है। संवेदना का वैचारिक पक्ष और निजता का यही सार्वजनिक रूपान्तरण पंकज सिंह की कविताओं को एक विशिष्ट व्यक्तित्व और विरल अर्थ प्रदान करते हैं।
‘जैसे पावन पानी’ की कविताओं में मानवीय आवेग और अवसाद रूपान्तरित होते हैं तर्क और विवेक के विविध रूपों में, जिससे एक समूची पीढ़ी की तरफ़ से संवेदनाओं को बचाने की उनकी गहरी चिन्ता और छटपटाहट एक वक्तव्य के रूप में प्रकट होती है। पवन-पानी जैसा बुनियादी और जैविक क़िस्म का यह प्रयास पंकज सिंह की कविताओं में आत्मसंघर्ष से लेकर जनसंघर्ष तक की स्थितियों में जारी रहता है। इस संग्रह की प्रेम कविताओं में यह मन्तव्य निहित है कि एक भयावह समय में प्रेम करना इस संसार को बचाए रखना है।
यह ग़ौरतलब है कि अच्छी राजनीतिक कविताएँ लिखना प्रायः कठिन माना जाता है मगर पंकज सिंह एक सार्थक जोखिम उठाते हुए राजनीति को कविता से ओझल नहीं होने देते, बल्कि कई आयामों से गुज़रते अपनी भाषा में एक नया अर्थ प्रदान करते हैं जो इस संग्रह की एक बहुत बड़ी विशेषता है।
Language | Hindi |
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Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2001 |
Edition Year | 2001, Ed. 1st |
Pages | 127p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |