Manavputra Isa : Jeewan Aur Darshan

Author: Raghuvansh
You Save 10%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Manavputra Isa : Jeewan Aur Darshan

विश्वविख्यात चरितावली में मानवपुत्र ईसा का नाम प्रथम पंक्ति में है। उनका जीवन एक स्तर पर जितना सुस्पष्ट और सुलिखित है, उतना ही उसके विविध पक्षों की व्याख्या को लेकर विद्वानों और विचारकों में मतभेद रहा है। वे ईश्वर के बेटे हैं पर मानवपुत्र कहे जाते हैं। इस रूप में लौकिक और अलौकिक संसार को वे बड़ी ख़ूबी से जोड़ते हैं। उनके सीधे-सादे जीवनवृत्त में सृष्टि के अनेक रहस्य अन्तर्निहित हैं। इस स्थिति में ईसा का जीवन आरम्भ से ही बड़े-बड़े जीवनीकारों, दार्शनिकों और कलाकारों के लिए सूक्ष्म जिज्ञासा का विषय रहा है। पश्चिमी संसार की कलाओं का एक बहुत बड़ा भाग ईसा के जीवन-चरित से प्रेरित और प्रभावित है। भारत के बड़े-बड़े मनीषी भी उनके व्यक्तित्व से सीखते हैं। महात्मा गांधी के लिए अत्यन्त प्रेरक प्रसंगों में से एक पर्वत-प्रवचन का रहा है।

ऐसे सरल पर उलझे हुए चरित को लिखना किसी भी लेखक के लिए योग्य चुनौती है। डॉ. रघुवंश ने केवल ईसा की कहानी नहीं कह दी है, वरन् अपनी भाषा में उसका पुनःसृजन किया है। वृत्त, चरित और जीवनी से आगे वह रचनात्मक साहित्य बनने के लिए प्रस्तुत है। इलाहाबाद कैथलिक सैमिनरी के कई विद्वानों ने उसे पढ़ा और देखा है। इस रूप में जहाँ एक ओर उसका साहित्यिक पक्ष विकसित है, वहीं उसका वृत्ताधार प्रामाणिक और परीक्षित, और इन दोनों स्तरों पर वह आकर्षक पाठ्य-सामग्री सिद्ध होगी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 281p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Manavputra Isa : Jeewan Aur Darshan
Your Rating
Raghuvansh

Author: Raghuvansh

रघुवंश

 

सुप्रसिद्ध सामाजिक-राजनीतिक चिन्तक प्रो. रघुवंश का जन्म 30 जून, 1921 को उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई के गोपामऊ क़स्बे में श्रीराम सहाय के परिवार में हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी भाषा में एम.ए., डी.फ़िल. की उपाधि प्राप्त करने के बाद इसी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में ही प्रवक्ता, रीडर, प्रोफ़ेसर (अध्यक्ष) रहकर हिन्दी भाषा, साहित्य के अध्ययन-अध्यापन में संलग्न रहे। सन् 1981 में सेवानिवृत्ति के उपरान्त विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शोध-परियोजना के अन्तर्गत शिमला के उच्च अध्ययन संस्थान में ‘मानव संस्कृति का रचनात्मक आयाम’ विषय पर शोध-कार्य किया।

प्रमुख कृतियाँ : ‘छायातप’ (कहानी); ‘तन्तुजाल’, ‘अर्थहीन’, ‘वह अलग व्यक्ति’, ‘यह जो अनिवार्य’ (उपन्यास); ‘हरी घाटी’ (यात्रा वृत्तान्त); ‘मानव पुत्र ईसा’ (जीवनी); ‘प्रकृति और काव्य’, ‘साहित्य का नया परिप्रेक्ष्य’, ‘समसामयिकता और आधुनिक हिन्दी कविता’, ‘नाट्य-कला’, ‘कबीर : एक नई दृष्टि’, ‘जायसी : एक नई दृष्टि’, ‘आधुनिक कवि निराला’, ‘हिन्दी साहित्य की समस्याएँ’ (आलोचना); ‘जेल और स्वतंत्रता’, ‘सर्जनशीलता का आधुनिक सन्दर्भ’, ‘आधुनिक परिस्थिति और हम लोग’, ‘मानवीय संस्कृति का रचनात्मक आयाम’, ‘पश्चिमी भौतिक संस्कृति का उत्थान और पतन’ (चिन्तन)!

सम्पादन : ‘हिन्दी साहित्य कोश’ के दो भागों का सम्पादन, शोध-पत्रिकाओं ‘आलोचना’,

‘आलोचना समीक्षा’, ‘क ख ग’ तथा ‘अनुशीलन’ का सम्पादन।

सम्मान : वर्ष 2008 का मूर्तिदेवी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिन्दी-संस्थान का ‘भारत भूषण पुरस्कार’, के.के. बिड़ला फ़ाउंडेशन का ‘शंकर पुरस्कार’, बिहार सरकार का

‘जननायक कर्पूरी ठाकुर पुरस्कार’ तथा उ.प्र. सरकार का ‘साहित्य-भूषण सम्मान’।

निधन : सन् 2013

Read More
Books by this Author
Back to Top