Main Janak Nandini

Author: Asha Prabhat
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Main Janak Nandini
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भारतीय मानस का अर्थ केवल पढ़े-लिखे शिक्षितों का मानस नहीं है, उसका मूल अभिप्राय है—लोक मानस। इस लोक मानस की भारतीयता का लक्षण है—काल के आदिहीन, अन्तहीन प्रवाह की भावना...। जनमानस में आज तक सीता का मूक (मौन) स्वरूप ही विद्यमान है। सौम्यस्वरूपा आज्ञाकारी पुत्री का, जो बिना तर्क-वितर्क या प्रतिरोध किए पिता का प्रण पूर्ण करने हेतु या पुत्र-धर्म के निर्वाह हेतु उस किसी भी पुरुष के गले में वरमाला डाल देती, जो शिव के विशाल पिनाक पर प्रत्यंचा का सन्‍धान कर देता। उस समर्पिता, सहधर्मिणी या सह-गामिनी पत्नी का जो सहजभाव से सारा राज्य सुख तथा वैभव त्यागकर पति राम की अनुगामिनी बनकर उनके संग चल देती है चुनौती-भरे वन्य जीवन के दु:खों को अपनाने।

सीता के चरित पर अनेक ग्रन्थ लिखे गए हैं, अधिकांश में उन्हें जगजननी, शक्तिस्वरूपा या देवी मानकर पूजनीया बनाया गया। किन्तु मानवी मानकर उनके मर्म के अन्तस्थल तक पहुँचने...उनके मर्म की थाह लेने की चेष्टा न के बराबर की गई। उनके प्रति किए गए राम के सारे निर्णय को उनकी मौन स्वीकृति मानकर राम की महानता, मर्यादा तथा उत्तमता को और महिमामंडित किया गया।

क्या वास्तव में ऐसा था? क्या सीता के पास अपने प्रति किए जा रहे अविचार के प्रति प्रतिरोध के स्वर का अभाव था? अपने जीवन-जनित अभीष्ट अपने कर्मों में निहित कर जीती सीता क्या मात्र पाषाण प्रतिमा थीं? क्या उनका अन्तस संवेदनशून्य था या उन्हें हर्ष-विषाद तथा शोक-सन्ताप नहीं व्याप्तता था? और क्या हर स्थिति-परिस्थिति को उन्होंने सहज स्वीकार लिया था, शिरोधार्य कर लिया था बिना प्रतिवाद किए?

यह उपन्यास ऐसे ही अनेक प्रश्नों का सन्धान है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 320p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Asha Prabhat

Author: Asha Prabhat

आशा प्रभात

वरिष्ठ कथाकार आशा प्रभात का जन्म 21 जुलाई, 1958 को हुआ। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास आदि सभी विधाओं में समान अधिकार से लिखा है। हिन्दी और उर्दू में अब तक उनकी 16 पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें पाँच उपन्यास—धुन्ध में उगा पेड़, जाने कितने मोड़, मैं और वह, गिरदाब, मैं जनकनन्दिनी; चार कहानी-संग्रह और दो काव्य-संग्रह हैं। उन्होंने दो चर्चित किताबों—साहिर समग्र और जब धरती नग़्मे गाएगी—का संकलन व सम्पादन किया है। हिन्दी से उर्दू और उर्दू से हिन्दी में अनूदित उनकी पाँच पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनकी रचनाओं के अनुवाद व प्रकाशन लगभग सभी भारतीय भाषाओं में हुए हैं। देश-विदेश की हिन्दी-उर्दू पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं का निरन्तर प्रकाशन और आकाशवाणी व दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण होता रहा है। 

उन्हें ‘काव्य संगम पुरस्कार’, ‘प्रेमचन्द सम्मान’, राष्ट्रभाषा परिषद् पटना द्वारा ‘साहित्य सेवा सम्मान’, ‘दिनकर सम्मान’, ‘साहित्य महोपाध्याय सम्मान’, बिहार उर्दू अकादमी पटना द्वारा ‘सुहैल अज़ीमाबादी अवार्ड’ व ‘खसूसी अवार्ड’, ए.बी.आई. द्वारा ‘वुमन ऑफ दी इयर अवार्ड’ (1998), दैनिक जागरण द्वारा ‘शताब्दी सम्मान’, प्रभात खबर द्वारा ‘अपराजिता सम्मान’, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना द्वारा ‘शताब्दी सम्मान’ तथा कई अन्य सम्मान मिल चुके हैं। 

फ़िलहाल स्वतंत्र लेखन और पत्रकारिता में सक्रिय।

ई-मेल : ashaprabhat77@gmail.com

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