Mahuacharit-Paper Back

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वरिष्ठ कथाकार काशीनाथ सिंह का उपन्यास ‘महुआचरित’ जीवन के अपार अरण्य में भटकती इच्छाओं का आख्यान है। मध्यवर्गीय समाज की सच्चाइयों को लेखक ने विशिष्ट कथा-रस के साथ प्रकट किया है। यह उपन्यास जिस शिल्प में अभिव्यक्त हुआ है, वह कथा-संसार में एक नया प्रस्थान निर्मित करता है। छोटे-बड़े किंचित् असमाप्त अपूर्ण वाक्य संकेतों की ओर उन्मुख विवरण और बहुअर्थी बिम्ब इस रचना को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। महुआ की सहेली है उसके मकान की छत जहाँ वह खुलती, खिलती और खेलती है। यह कल्पना ही अपने आपमें अनूठी और व्यंजक है।

कहना न होगा कि ‘महुआचरित’ को ‘वृत्तान्त का अन्त’ करती कथा-रचना के रूप में रेखांकित किया जा सकता है।

अस्सी साल के स्वतंत्रता सेनानी पिता की पुत्री महुआ की देहासक्ति से विवाह तक की यात्रा और फिर उसमें जागता अस्मिता-बोध—इस कथा को लेखक ने समुचित सामाजिक सन्दर्भों के साथ प्रस्तुत किया है। स्त्री-विमर्श की अनुगूँज के बावजूद यह प्रश्न आकार लेता है, ‘ऐसा क्या है देह में कि उसका तो कुछ नहीं बिगड़ता/लेकिन मन का सारा रिश्ता-नाता तहस-नहस हो जाता है।’

सघन संवेदना और सर्वथा नवीन संरचना से समृद्ध ‘महुआचरित’ उपन्यास निश्चित रूप से पाठकों की आत्मीयता अर्जित करेगा।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 100P
Price ₹199.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Kashinath Singh

Author: Kashinath Singh

काशीनाथ सिंह

काशीनाथ सिंह का जन्म 1 जनवरी, 1937 को बनारस, उत्तर प्रदेश के जीयनपुर गाँव में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव के पास के विद्यालयों में हुई। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. (1959) और पी-एच.डी. (1963) किया। इसी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष रहे।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘लोग बिस्तरों पर’, ‘सुबह का डर’, ‘आदमीनामा’, ‘नई तारीख़’, ‘सदी का सबसे बड़ा आदमी’, ‘कल की फटेहाल कहानियाँ’, ‘कहानी उपखान’, ‘पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘काशी का अस्सी’, ‘अपना मोर्चा’, ‘रेहन पर रग्घू’, ‘महुआचरित’, ‘उपसंहार’ (उपन्यास); ‘घोआस’ (नाटक); ‘हिन्दी में संयुक्त क्रियाएँ’ (शोध); ‘आलोचना भी रचना है’ (समीक्षा); ‘याद हो कि न याद हो’, ‘आछे दिन पाछे गए’, ‘घर का जोगी जोगड़ा’ (संस्मरण); ‘गपोड़ी से गपशप’, ‘बातें हैं बातों का क्या’, ‘हंसा करो पुरातन बात’ (साक्षात्कार)।

‘अपना मोर्चा’ उपन्यास का जापानी एवं कोरियाई भाषाओं में अनुवाद। जापानी में कहानियों का अनूदित संग्रह। कई कहानियों के भारतीय और अन्य विदेशी भाषाओं में अनुवाद। उपन्यास और कहानियों की रंग-प्रस्तुतियाँ। तीसरी दुनिया के लेखकों-संस्कृतिकर्मियों के सम्मेलन के सिलसिले में जापान-यात्रा (नवम्बर, 1981)।

उन्हें ‘भारत भारती पुरस्कार’, ‘कैफ़ी आज़मी अवार्ड’, ‘कथा सम्मान’, ‘समुच्चय सम्मान’, ‘शरद जोशी सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘रचना समग्र पुरस्कार’ और ‘रेहन पर रग्घू’ उपन्यास के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया है।

सम्प्रति : बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन।

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