Kuano Nadi

Edition: 2015, Ed. 5th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Kuano Nadi

“शब्द पड़ने लगे छोटे

दर्द बढ़ने लगा

कहे भी थे जो कभी सब हो गए अनकहे”

छठे दशक में हिन्दी कविता में जो ताज़गी और सम्पन्नता आई थी, वह आज भले ही इधर-उधर छितरा गई दिखती हो, पर सर्वेश्वर के काव्य में आज भी सही-सलामत मौजूद है। इंसान के गहरे दु:खों में सामयिक दृश्यों का अर्थ व्यक्त करनेवाली वही सहजता उनकी कविता में अन्त तक मिलती है जो पहले कविता-संग्रह ‘काठ की घंटियाँ’ के प्रकाशन ने उनके नाम के साथ जोड़ी थी। राजनीति की अमानवीयता और मानव सम्बन्धों के विशृंखलन का त्रास सर्वेश्वर ने समाज के दबे हुए वर्गों, युद्ध में खेत रहे समाजों और प्राकृतिक कोप में असहाय मरते लोगों के बीच महसूस और अभिव्यक्त किया है। यह संग्रह सर्वेश्वर की काव्य-यात्रा में किसी मोड़ का सूचक नहीं, केवल उन अन्तर्धाराओं के पहले से अधिक अधीर और मुखर हो उठने का सूचक है जिन्हें पाठक तथा समीक्षक उनकी कविता में बराबर पाते रहे हैं। ‘कुआनो नदी’ माला की तीन कविताओं के माध्यम से सर्वेश्वर ने एक ऐसा गहन प्रतीक हिन्दी कविता को दिया है, जिसका अर्थवृत्त समय के साथ फैलता रहा है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1973
Edition Year 2015, Ed. 5th
Pages 95p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14.5 X 1
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Sarveshwardayal Saxena

Author: Sarveshwardayal Saxena

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जन्म 15 सितम्बर, 1927 को बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ।

आपने इलाहाबाद से बी.ए. और एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

जीविकोपार्जन के लिए मास्टर, क्लर्क, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, ‘दिनमान’ में प्रमुख उप-सम्पादक और फिर कुछ दिनों ‘पराग’ के सम्पादक। ‘तीसरा सप्तक’ के कवि और ‘नई कविता’ के अधिष्ठाता शीर्षस्थ कवियों में एक।

आपकी प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘काठ की घंटियाँ’, ‘बाँस का पुल’, ‘एक सूनी नाव’, ‘गर्म हवाएँ’ (बाद में ये चारों कविता-संग्रह क्रमशः ‘कविताएँ : एक’ और ‘कविताएँ : दो’ में संकलित व प्रकाशित), ‘कुआनो नदी’, ‘जंगल का दर्द’, ‘खूँटियों पर टँगे लोग’, ‘कोई मेरे साथ चले’ (कविता-संग्रह); ‘उड़े हुए रंग’ (उपन्यास); ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘सोया हुआ जल’ (लघु उपन्यास); ‘लड़ाई’, ‘अँधेरे पर अँधेरा’ (कहानी); ‘बकरी’ (नाटक); ‘बतूता का जूता’, ‘महँगू की टाई’, ‘बिल्ली के बच्चे’ (बाल-कविता); ‘कुछ रंग, कुछ गंध’ (यात्रा-संस्मरण) ‘शमशेर’, ‘नेपाली कविताएँ’, ‘अँधेरा का हिसाब’ आदि (सम्पादन)।

आपकी रचनाएँ भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, जर्मन, पोलिश, चेक आदि भाषाओं में अनूदित।

‘खूँटियों पर टँगे लोग’ के लिए 1983 के 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' से सम्मानित किए गए।

24 सितम्बर, 1983 को नई दिल्ली में निधन।    

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