Batuta Ka Juta

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Batuta Ka Juta
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सर्वेश्वरदयाल सक्सेना कहते हैं कि ‘बतूता का जूता’ की कविताएँ अपने बच्चों के साथ उठते-बैठते उन्हें खुश करने के लिए खेल-खेल में गढ़ी गई हैं। ज्यों-ज्यों उनके बच्चे बड़े होते जा रहे हैं; कविता की उनकी ज़रूरत बदलती जा रही है। इस तरह कविता में तुकों का मज़ा लेने; शब्दों को ज़बान पर लपेटने-खोलने; पंक्तियों को गाने, चिल्लाने, सपाटे से बोले जाने, झटके देने; बात का लुत्फ़ उठाने और खुद उसमें जोड़ने-घटाने का सारा काम उनके बच्चे इन कविताओं के माध्यम से कर चुके हैं। ‘बतूता का जूता’ की बाल-कविताएँ बच्चों के रचनात्मक और बौद्धिक संसार को समृद्ध करती जान पड़ती हैं।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 1971
Edition Year 2010, Ed. 2nd
Pages 32p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 20.5 X 15.5 X 0.2
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Sarveshwardayal Saxena

Author: Sarveshwardayal Saxena

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जन्म 15 सितम्बर, 1927 को बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ।

आपने इलाहाबाद से बी.ए. और एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

जीविकोपार्जन के लिए मास्टर, क्लर्क, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, ‘दिनमान’ में प्रमुख उप-सम्पादक और फिर कुछ दिनों ‘पराग’ के सम्पादक। ‘तीसरा सप्तक’ के कवि और ‘नई कविता’ के अधिष्ठाता शीर्षस्थ कवियों में एक।

आपकी प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘काठ की घंटियाँ’, ‘बाँस का पुल’, ‘एक सूनी नाव’, ‘गर्म हवाएँ’ (बाद में ये चारों कविता-संग्रह क्रमशः ‘कविताएँ : एक’ और ‘कविताएँ : दो’ में संकलित व प्रकाशित), ‘कुआनो नदी’, ‘जंगल का दर्द’, ‘खूँटियों पर टँगे लोग’, ‘कोई मेरे साथ चले’ (कविता-संग्रह); ‘उड़े हुए रंग’ (उपन्यास); ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘सोया हुआ जल’ (लघु उपन्यास); ‘लड़ाई’, ‘अँधेरे पर अँधेरा’ (कहानी); ‘बकरी’ (नाटक); ‘बतूता का जूता’, ‘महँगू की टाई’, ‘बिल्ली के बच्चे’ (बाल-कविता); ‘कुछ रंग, कुछ गंध’ (यात्रा-संस्मरण) ‘शमशेर’, ‘नेपाली कविताएँ’, ‘अँधेरा का हिसाब’ आदि (सम्पादन)।

आपकी रचनाएँ भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, जर्मन, पोलिश, चेक आदि भाषाओं में अनूदित।

‘खूँटियों पर टँगे लोग’ के लिए 1983 के 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' से सम्मानित किए गए।

24 सितम्बर, 1983 को नई दिल्ली में निधन।    

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