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Khwab Ke Do Din-Paper Back

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मैं बुरी तरह सपने देखता रहा हूँ। चूँकि सपने देखना-न-देखना अपने बस में नहीं होता, मैंने भी इन्हें देखा। आप सबकी तरह मैंने भी कभी नहीं चाहा कि स्वप्न फ़्रायड या युंग जैसों की सैद्धान्तिकता से आक्रान्त होकर आएँ या प्रसव पीड़ा की नीम बेहोशी में अखिल विश्व के पापनिवारक-ईश्वर के नए अवतार की सुखद आकाशवाणी के प्ले-बैक के साथ।

मीडिया के ईथर में तैरते हुए 1992 की नीम बेहोशी में ‘चिन्ताघर’ नामक लम्बा स्वप्न देखा गया था और चौदह बरस बाद अपने सिरहाने रखी 2006 की डायरी में जो सफे मिले, उनका नाम था—‘कॉमरेड गोडसे’। ऐसे जैसे एक बनवास से दूसरे बनवास में जाते हुए ख़्वाब के दो दिन।

कुछ लोग कहते हैं, तब अख़बारों के एडीटर की जगह मालिक के नाम ही छपते थे, चौदह साल बाद कहने लगे इश्तहारों और सूचनाओं के बंडलों पर जो एडीटर का नाम छपता है, वह मालिक के हुक्म बिना इंच भर न इधर हो, न उधर। कुछ लोग कहते हैं, बड़ा ईमान था जो हाथ से लिखते थे, चौदह साल बाद कहने लगे छोटा कम्प्यूटर है लाखों-लाख पढ़ते हैं।

तब एक लड़का था जो ‘चिन्ताघर’ में घूमता, मुट्ठियों में पसीने को तेजाब बनाता, दियासलाई उछालना चाहता था। चौदह साल बाद दो हो गए, जो ज़ोरदार मालिक और चमकदार एडीटर के चपरासी और साथी की शक्ल में आत्माओं के छुरे उठाए फिरते हैं। पहले दिन से चौदह बरस बाद के बनवासी दिन टकरा-टकरा कर चिंगारियाँ फेंकते हैं। इन चिंगारियों में हुई सुबह ख़्वाबों को खोल-खोल दे रही है।

आज इस सुबह सपनों की प्रकृति के अनुरूप भयंकर रूप से एक-दूसरे में गुम काल, स्थान और पात्रों के साथ मैं अपने सपनों की यथासम्भव जमावट का एक चालू चिट्ठा आपको पेश करता हूँ।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2012
Edition Year 2021 Ed. 2nd
Pages 284p
Price ₹299.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Yashwant Vyas

Author: Yashwant Vyas

यशवंत व्यास

नए प्रयोगों के लिए चर्चित व्यंग्यकार-पत्रकार यशवंत व्यास कई मीडिया उपक्रमों में प्रमुख रहे हैं। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘बोसकीयाना’, ‘चिन्ताघर’, ‘कामरेड गोडसे’, ‘ख्वाब के दो दिन’, ‘अपने गिरेबान में’, ‘कल की ताजा ख़बर’, ‘अमिताभ का अ’, ‘हिट उपदेश’, ‘अब तक छप्पन’, ‘इन दिनों प्रेम उर्फ़ लौट आओ नीलकमल’, ‘यारी-दुश्मनी’, ‘जो सहमत हैं सुनें’ आदि।

‘अमर उजाला’ के समूह सलाहकार और कई सम्मानों से सम्मानित यशवंत व्यास डिजिटल और प्रिंट के साझे की दोस्ताना कारीगरी पर कुछ अनूठे प्रयोगों में व्यस्त हैं। कोरोना की पहली लहर में रिलीज ‘कवि की मनोहर कहानियाँ’ (के के एम के) इतनी लोकप्रिय हुईं कि तीसरी के धड़के में नए गुनाहों के साथ ‘के के एम के रिबूट’ हुई।

ई-मेल : yashwantvyas@gmail.com

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