Khatarnak Yon Janit Rog Aur Aids

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Khatarnak Yon Janit Rog Aur Aids
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प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक। रोगाणु के प्रवेश के औसतन 25 दिन बाद यौनांग पर अंडाकार फफोला बनता है। इसकी बाहरी सतह टूटने से यह एक छाले का रूप ले लेता है। छाले को प्राथमिक शैंकर भी कहते हैं। इससे ख़ून नहीं आता और सामान्य तौर पर दर्द भी नहीं होता। 95 प्रतिशत यौन रोगियों में घाव शिशन के ऊपर बनता है लेकिन समलिंगी रोगियों में यह गुदा के किनारे पर होता है। इसके अलावा यह होंठों अथवा जीभ पर भी हो सकता है। स्त्रियों में योनि द्वार के आसपास बनता है।

रोग की द्वितीयक अवस्था में 80 प्रतिशत मरीज़ों में त्वचा के रोग भी हो जाते हैं। कुछ मरीज़ों में यकृत, तिल्ली, मस्तिष्क की झिल्लियों में भी रोग फैल जाता है। इसके साथ ही बुख़ार, सिरदर्द, गले में दर्द इत्यादि लक्षण पैदा होते हैं।

पूरे शरीर की त्वचा में विभिन्न तरह की फुंसियाँ भी उभरती हैं। ये फुंसियाँ गुलाबी अथवा ताँबिया रंग की होती हैं। इनमें खुजलाहट नहीं होती। रोग की द्वितीयक अवस्था अधिक संक्रामक मानी जाती है। इस अवस्था में शरीर की प्रायः सभी लसिका ग्रन्थियों में सूजन आ जाती है।

रोग की तृतीयक अवस्था में शरीर के विभिन्न भागों पर ठोस गाँठों का निर्माण होता है जिन्हें गुम्मा कहते हैं। ये अनियमित आकार की होती हैं। तृतीयक सिफ़लिस पुरुष अथवा स्त्री के प्रायः सभी अंग संस्थानों में फैल जाती हैं उदाहरणार्थ—यह हृदय एवं रक्त वाहिकाओं, फेफड़ों, पाचन संस्थान, अस्थि तंत्र, तंत्रिका तंत्र इत्यादि को प्रभावित कर इनके कार्यों में बाधा उत्पन्न करती है, यहाँ तक कि रोगी पागल हो जाता है। उसको लकवा लग सकता है, उसकी हृदयगति रुक सकती है।

—इसी पुस्तक से

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 62p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 0.5
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Premchandra Swarnkar

Author: Premchandra Swarnkar

प्रेमचन्द्र स्वर्णकार

शिक्षा : बी.एससी., एम.बी.बी.एस., एम.डी. (पैथोलॉजी)।

प्रथम श्रेणी चिकित्सा-विशेषज्ञ (पैथोलॉजी), ‘हेल्थ एंड न्यूट्रिशन’ पत्रिका, मुम्बई के पूर्व विशेषज्ञ सलाहकार। विगत चार दशक से मानव-स्वास्थ्य एवं चिकित्सा-विज्ञान सम्बन्धी सैकड़ों लेख देश की प्रमुख स्वास्थ्य एवं पारिवारिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

प्रकाशित पुस्तकें : एड्स पर हिन्दी की पहली पुस्तक ‘महारोग एड्स’ के अलावा मानव स्वास्थ्य और चिकित्सा-विज्ञान पर 30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। साथ ही कुछ साहित्यिक पुस्तकें—‘नहीं, यह व्यंग्य नहीं’, ‘मीटिंग चालू आहे’ और काव्य-संकलन ‘मायने बदल चुके हैं’ तथा लघु कथा-संकलन ‘टुकड़ा-टुकड़ा सच’ भी प्रकाशित।

पुरस्कार : 'डॉ. मेघनाद साहा राष्ट्रीय पुरस्कार’, 'आर्यभट पुरस्कार’, 'राजीव गांधी मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार’, ‘राजभाषा गौरव पुरस्कार’, ‘वाङ्मय पुरस्कार’, ‘डॉ. शैलेन्द्र खरे स्मृति सम्मान’ आदि।

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