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Kachhua Aur Khargosh-Paper Back

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कुछ रचनाएँ ऐसी भी होती हैं, जो बच्चों के लिए लिखी जाती हैं, लेकिन उनकी शिक्षा या सीख सार्वभौमिक और सार्वकालिक होती है। ‘कछुआ और ख़रगोश’ डॉ. जाकिर हुसैन की ऐसी ही ज्ञानवर्द्धक कहानियों का संकलन है, जिसमें पशु-पक्षियों के बहाने मनुष्य के जीवन के विभिन्न पक्षों को उकेरा गया है।

‘कछुआ और ख़रगोश’ कहानी में विद्वानों और शिक्षकों पर तीखा व्यंग्य किया गया है जो अपने ज्ञान के जाल में मकड़ी की तरह स्वयं उलझ जाते हैं। वास्तविकता और वास्तविक तथ्यों की ओर ध्यान न देकर इधर-उधर भटकते हैं और दूसरों को भटकाते हैं। विद्वान अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन करने के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जो बहुत ही कठिन और गूढ़ होती है। वे यह भूल जाते हैं कि बात जिससे की जा रही है, वह उसे समझ भी रहा है या नहीं। इस कहानी में प्रो. कपचाक़, प्रो. फ़िलकौर और अलफ़लसेफुलहिन्दी ने कहीं-कहीं ऐसी ही भाषा का प्रयोग किया है जो पढ़नेवालों के छक्के छुड़ा देती है।

क़ैद का जीवन जब एक बकरी के लिए इतना कष्टदायक हो सकता है, तो मनुष्य के लिए कितना होगा—यह जानकारी हमें ‘अब्बू ख़ाँ की बकरी’ से मिलती है जिसे आज़ादी के लिए अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। इसी तरह ‘मुर्गी चली अजमेर’, ‘उसी से ठंडा उसी से गरम’, ‘जुलाहा और बनिया’, ‘सच्ची मुहब्बत’, ‘सईदा की अम्मा’ आदि ऐसी कहानियाँ हैं, जो जीवन के विभिन्न पक्षों को अपनी मनोरंजक शैली में प्रस्तुत करती हैं। बच्चों के लिए लिखी गई ये कहानियाँ बड़ों के लिए भी उपयोगी और मनोरंजक हैं।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Majda Asad
Editor Not Selected
Publication Year 2013
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 135p
Price ₹199.00
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Author: Zakir Hussain

ज़ाकिर हुसैन

जन्म : सन् 1897 में हैदराबाद में।

शिक्षा : उनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई।

सन् 1907 में जब उनके पिता का निधन हो गया तो समस्त परिवार कायमगंज आ गया और 8 दिसम्बर, 1907 को इस्लामिया हाईस्कूल, इटावा में पाँचवीं कक्षा में दाख़िला।

सन् 1913 ई. में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और मोहम्मडन ऐंग्लो ओरिएंटल कॉलेज, अलीगढ़ में इंटरमीडिएट (विज्ञान) में प्रवेश। सन् 1918 ई. में प्रथम श्रेणी में बी.ए. उत्तीर्ण किया। एम.ए. में अर्थशास्त्र लिया और साथ ही एलएल.बी. में भी प्रवेश किया। अभी वह एम.ए. द्वितीय वर्ष के छात्र ही थे कि उन्हें कॉलेज में ट्यूटर नियुक्त कर दिया गया। जर्मनी में बर्लिन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएच.डी.।

डॉ. जाकिर हुसैन ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में रहते हुए और फिर उच्च प्रशासनिक पदों पर बिताया, लेकिन मूलतः वे एक शिक्षक थे—सीधे, सरल शिक्षक।

उपलब्धियाँ : 1945 में वह ‘इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफ़ेयर्स’ के सदस्य बने और अक्टूबर 1951 में इसके उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने चीनी विद्वानों के दल का दिल्ली में स्वागत किया। 3 अप्रैल, 1952 को वह राज्यसभा के सदस्य बनाए गए। इसी वर्ष वह प्रेस कमीशन के सदस्य भी बने और 1954 तक इसके सदस्य रहे। 1954 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित। 1957 से 1962 तक बिहार के राज्यपाल। दिसम्बर 1958 में वह भारतीय विश्वविद्यालय आयोग के सदस्य नामित हुए। 1963 में सर्वोच्च सम्मान ‘भारतरत्न’ से नवाज़े गए। 13 मई, 1962 से 12 मई, 1967 तक उपराष्ट्रपति पद पर आसीन रहे और 13 मई, 1967 से 3 मई, 1969 तक राष्ट्रपति के रूप में देश को गौरवान्वित किया।

निधन : 3 मई, 1969

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