Jab Top Mukabil Ho-Hard Cover

Author: Prabhash Joshi
Special Price ₹340.00 Regular Price ₹400.00
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ISBN:9788126716111
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9788126716111

‘जब तोप मुकाबिल हो’ पुस्तक में प्रभाष जोशी के पत्रकारिता और मीडिया के दूसरे माध्यमों से सम्बन्धित लेखों के अलावा भाषा, अर्थ, जगत और महिलाओं से जुड़े लेख संकलित हैं।

पुस्तक की भूमिका में प्रभाष जोशी लिखते हैं :

“ ‘जब तोप मुकाबिल हो’ तो अख़बार निकालो’—ऐसा अकबर इलाहाबादी ने कहा है। आज लोग तोप का मुक़ाबला करने को अख़बार नहीं निकालते। वे पैसा और थोड़ा-बहुत पव्वा कमाने के लिए अख़बार निकालते हैं। इसलिए छापने के पैसे माँगने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं होती। अपन ऐसी पत्रकारिता करने नहीं आए थे। आज़ादी के बाद के दूसरे दशक में लगता था कि पत्रकारिता समाज बदलने और नया समतावादी और न्याय आधारित समाज बनाने का एक माध्यम है। आज आप ऐसी बातें करें तो लोग हँसने लगते हैं। फिर भी नरसिंह राव के कहने पर मनमोहन सिंह जब सन् इक्यानबे में नवउदार आर्थिक व्यवस्था लाए तब तक भारतीय पत्रकारिता में समाज परिवर्तन की वाहक बनने की इच्छा थी। आज जो प्रवृत्तियाँ आप देख रहे और दुखी हो रहे हैं, वे सब इसके बाद की हैं।

लेकिन यहाँ जो लेख संकलित हैं, वे आज की पत्रकारिता की आलोचना में नहीं हैं। ये पत्रकारिता करने या उसे कॉलेजों में पढ़ानेवालों के लिए भी नहीं हैं। मुझे हमेशा लगता रहा कि पत्रकारिता करने और करके दिखाने की चीज़ है, उपदेश देने या सिखाने की नहीं। यह अपने काम की आत्मालोचन है और जो कर न पाए, उसका अफ़सोस भी। लेकिन यह पत्रकारिता को जनसम्पर्क अभियान या प्रकाशन उद्योग बना देने के विरुद्ध तो है ही। मुझे अब कोई पचास साल हो जाएँगे लेकिन कभी मुझे नहीं लगा कि पत्रकारिता बेकार का काम है। ऐसा होता तो अपने अख़बार में मैं लगातार लिखता नहीं रह सकता था—न दैन्यम् न पलायनम्!”

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 270p
Price ₹400.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2.5
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Prabhash Joshi

Author: Prabhash Joshi

प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशी 15 जुलाई, 1937 को मध्य प्रदेश में सिहोर ज़िले के आष्टा गाँव में पैदा हुए। शिक्षा इन्‍दौर के महाराजा शिवाजी राव मिडिल स्कूल और हाईस्कूल में हुई। होल्कर कॉलेज, गुजराती कॉलेज और क्रिश्चियन कॉलेज में पहले गणित और विज्ञान पढ़े। देवास के सुनवानी महाकाल में ग्राम-सेवा और अध्यापन किया। पत्रकारिता को समाज परिवर्तन का माध्यम मानकर सन् 60 में ‘नई दुनिया’ में काम शुरू किया। राजेन्द्र माथुर, शरद जोशी और राहुल बारपुते के साथ काम किया। यहीं विनोबा की पहली नगर-यात्रा की रिपोर्टिंग की। 1966 में शरद जोशी के साथ भोपाल से दैनिक ‘मध्य प्रदेश’ निकाला। 1968 में दिल्ली आकर राष्ट्रीय गांधी समिति में प्रकाशन की ज़िम्मेदारी ली। 1972 में चम्बल और बुंदेलखंड के डाकुओं के समर्पण के लिए जयप्रकाश नारायण के साथ काम किया। अहिंसा के इस प्रयोग पर अनुपम मिश्र और श्रवण कुमार गर्ग के साथ पुस्तक लिखी—‘चम्बल की बन्दूकें : गांधी के चरणों में’। 1974 में ‘प्रजानीति’ (साप्ताहिक) और ‘आसपास’ निकाली जो इमरजेंसी में बन्द हो गई। जनवरी 1978 से अप्रैल 81 तक चंडीगढ़ में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का सम्पादन किया। फिर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (दिल्ली संस्करण) के दो साल तक सम्पादक रहे। सन् 1983 में प्रभाष जोशी के सम्पादन में ‘जनसत्ता’ का प्रकाशन हुआ।

प्रभाष जी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘मसि कागद’, ‘हिन्दू होने का धर्म’, ‘आगे अन्‍धी गली है’, ‘धन्‍न नरबदा मइया हो’, ‘जब तोप मुकाबिल हो’, ‘जीने के बहाने’, ‘खेल सिर्फ़ खेल नहीं है’, ‘लुटियन के टीले का भूगोल’, ‘21वीं सदी : पहला दशक’, ‘प्रभाष-पर्व’, ‘कहने को बहुत कुछ था’।

निधन : 5 नवम्बर, 2009 को दिल्ली में।

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