आचार्य विनोबा भावे ने 1960 में इन्दौर और आसपास के कुछ क्षेत्रों की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने समाज के हर तबके से संवाद किया। धर्म, संस्कृति और मानव-व्यवहार की व्याख्याएँ करते हुए उन्हें जाग्रत किया। इस दौरान उन्होंने लगभग डेढ़ सौ भाषण किए और ‘जय जगत’जैसी अपनी अवधारणाओं से लोगों को परिचित कराया।
उनतालीस दिनों की इस यात्रा की ‘नई दुनिया’ के लिए रिपोर्टिंग की थी प्रभाष जोशी ने। पत्रकार के रूप में यह उनका पहला काम था, जिसमें कह सकते हैं, उन्होंने उस पत्रकारिता के आधारभूत मूल्यों की पहचान की, जिनका अनुसरण वे आजीवन करनेवाले थे। इस किताब में प्रभाष जी हमें विनोबा जी के साथ-साथ चलते दिखाई देते हैं। विनोबा जहाँ समाज, देश और विश्व के अपने स्वप्न को व्याख्यायित कर रहे थे, वहीं प्रभाष जी उनके भावों को अपने शब्दों में विशाल पाठक समुदाय तक पहुँचा रहे थे।
सूचनाओं, विचारों और परिवेश के सजीव चित्रण के साथ दैनिक रिपोर्टिंग भी कैसे साहित्यिक रचना की तरह दीर्घजीवी हो सकती है, यह किताब उसका जीवन्त उदाहरण है। इस किताब को पत्रकारिता के अध्येता एक पाठशाला की तरह बरत सकते हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2023 |
Edition Year | 2023, Ed. 1st |
Pages | 384p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2.5 |