Vinoba Darshan : Vinoba Ke Saath Untalis Din

Author: Prabhash Joshi
Edition: 2023, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Vinoba Darshan : Vinoba Ke Saath Untalis Din
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आचार्य विनोबा भावे ने 1960 में इन्दौर और आसपास के कुछ क्षेत्रों की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने समाज के हर तबके से संवाद किया। धर्म, संस्कृति और मानव-व्यवहार की व्याख्याएँ करते हुए उन्हें जाग्रत किया। इस दौरान उन्होंने लगभग डेढ़ सौ भाषण किए और ‘जय जगत’जैसी अपनी अवधारणाओं से लोगों को परिचित कराया।

उनतालीस दिनों की इस यात्रा की ‘नई दुनिया’ के लिए रिपोर्टिंग की थी प्रभाष जोशी ने। पत्रकार के रूप में यह उनका पहला काम था, जिसमें कह सकते हैं, उन्होंने उस पत्रकारिता के आधारभूत मूल्यों की पहचान की, जिनका अनुसरण वे आजीवन करनेवाले थे। इस किताब में प्रभाष जी हमें विनोबा जी के साथ-साथ चलते दिखाई देते हैं। विनोबा जहाँ समाज, देश और विश्व के अपने स्वप्न को व्याख्यायित कर रहे थे, वहीं प्रभाष जी उनके भावों को अपने शब्दों में विशाल पाठक समुदाय तक पहुँचा रहे थे।

सूचनाओं, विचारों और परिवेश के सजीव चित्रण के साथ दैनिक रिपोर्टिंग भी कैसे साहित्यिक रचना की तरह दीर्घजीवी हो सकती है, यह किताब उसका जीवन्त उदाहरण है। इस किताब को पत्रकारिता के अध्येता एक पाठशाला की तरह बरत सकते हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 384p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2.5
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Prabhash Joshi

Author: Prabhash Joshi

प्रभाष जोशी

प्रभाष जोशी 15 जुलाई, 1937 को मध्य प्रदेश में सिहोर ज़िले के आष्टा गाँव में पैदा हुए। शिक्षा इन्‍दौर के महाराजा शिवाजी राव मिडिल स्कूल और हाईस्कूल में हुई। होल्कर कॉलेज, गुजराती कॉलेज और क्रिश्चियन कॉलेज में पहले गणित और विज्ञान पढ़े। देवास के सुनवानी महाकाल में ग्राम-सेवा और अध्यापन किया। पत्रकारिता को समाज परिवर्तन का माध्यम मानकर सन् 60 में ‘नई दुनिया’ में काम शुरू किया। राजेन्द्र माथुर, शरद जोशी और राहुल बारपुते के साथ काम किया। यहीं विनोबा की पहली नगर-यात्रा की रिपोर्टिंग की। 1966 में शरद जोशी के साथ भोपाल से दैनिक ‘मध्य प्रदेश’ निकाला। 1968 में दिल्ली आकर राष्ट्रीय गांधी समिति में प्रकाशन की ज़िम्मेदारी ली। 1972 में चम्बल और बुंदेलखंड के डाकुओं के समर्पण के लिए जयप्रकाश नारायण के साथ काम किया। अहिंसा के इस प्रयोग पर अनुपम मिश्र और श्रवण कुमार गर्ग के साथ पुस्तक लिखी—‘चम्बल की बन्दूकें : गांधी के चरणों में’। 1974 में ‘प्रजानीति’ (साप्ताहिक) और ‘आसपास’ निकाली जो इमरजेंसी में बन्द हो गई। जनवरी 1978 से अप्रैल 81 तक चंडीगढ़ में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ का सम्पादन किया। फिर ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (दिल्ली संस्करण) के दो साल तक सम्पादक रहे। सन् 1983 में प्रभाष जोशी के सम्पादन में ‘जनसत्ता’ का प्रकाशन हुआ।

प्रभाष जी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘मसि कागद’, ‘हिन्दू होने का धर्म’, ‘आगे अन्‍धी गली है’, ‘धन्‍न नरबदा मइया हो’, ‘जब तोप मुकाबिल हो’, ‘जीने के बहाने’, ‘खेल सिर्फ़ खेल नहीं है’, ‘लुटियन के टीले का भूगोल’, ‘21वीं सदी : पहला दशक’, ‘प्रभाष-पर्व’, ‘कहने को बहुत कुछ था’।

निधन : 5 नवम्बर, 2009 को दिल्ली में।

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