Hum Jo Dekhate Hain-Paper Back

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‘पहाड़ पर लालटेन’ और ‘घर का रास्ता’ के बाद मंगलेश डबराल के तीसरे कविता–संग्रह ‘हम जो देखते हैं’ का पहला संस्करण 1995 में प्रकाशित हुआ था। इन वर्षों में इस संग्रह के कई संस्करणों का प्रकाशित होना इसका साक्ष्य है कि बाज़ार, उपभोगवाद, भूमंडलीकरण और साम्राज्यवादी पूँजी की बजबजाती दुनिया के बावजूद समाज में कविता के व्यापक और संवेदनशील कोने बचे हुए हैं और उसके सच्चे पाठक भी। यह संग्रह इस कठिन समय में भी ऐसी कविता को सम्भव करता है जो विभिन्न ताक़तों के ज़रिए भ्रष्ट की जा रही संवेदना और निरर्थक बनती भाषा में एक मानवीय हस्तक्षेप कर सके। ये कविताएँ उन अनेक चीज़ों की आहटों से भरी हैं जो हमारी क्रूर व्यवस्था में या तो खो गई हैं या लगातार क्षरित और नष्ट हो रही हैं। वे उन खोई हुई चीज़ों को ‘देख’ लेती हैं, उनके संसार तक पहुँच जाती हैं और इस तरह एक साथ हमारे बचे–खुचे वर्तमान जीवन के अभावों और उन अभावों को पैदा करनेवाले तंत्र की भी पहचान करती हैं। अपने समय, समाज, परिवार और ख़ुद अपने आपसे एक नैतिक साक्षात्कार इन कविताओं का एक मुख्य वक्तव्य है।

‘हम जो देखते हैं’ में कई ऐसी कविताएँ भी हैं जो चीज़ों, स्थितियों और कहीं–कहीं अमूर्तनों के सादे वर्णन की तरह दिखती हैं और जिनकी संरचना गद्यात्मक है। किसी नए प्रयोग का दावा किए बग़ैर ये कविताएँ अनुभव की एक नई प्रक्रिया और बुनावट को प्रकट करती हैं, जहाँ अनेक बार विवरण ही सार्थक वक्तव्य में बदल जाते हैं। लेकिन गद्य का सहारा लेती ये कविताएँ ‘गद्य कविताएँ’ नहीं हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ एक गहरी चिन्ता और यहाँ तक कि नाउम्मीदी भी जताती लगती हैं, लेकिन शायद यह ज़रूरी चिन्ता है जो हमारे वक़्त में विवेक और उम्मीद तक पहुँचने का एकमात्र ज़रिया रह गया है। इनकी रचना–सामग्री हमारी साधारण, तात्कालिक, दैनंदिन और परिचित दुनिया से ली गई है, लेकिन कविता में वह अपनी बुनियादी शक़्ल को बनाए रखकर कई असाधारण और अपरिचित अर्थ–स्वरों की ओर चली जाती है। विडम्बना, करुणा और विनम्र शिल्प मंगलेश डबराल की कविता की परिचित विशेषताएँ रही हैं और इस संग्रह में वे अधिक परिपक्व होकर अभिव्यक्त हुई हैं। यह ऐसी विनम्रता है, जो गहरे नैतिक आशयों से उपजी है और जिसमें आक्रामकता के मुक़ाबले कहीं अधिक बेचैन करने की क्षमता है।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 93p
Price ₹199.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Mangalesh Dabral

Author: Mangalesh Dabral

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई, 1948 को उत्तराखंड के टिहरी ज़िले के गाँव काफलपानी में हुआ।

‘प्रतिपक्ष’, ‘आसपास’, ‘पूर्वग्रह’, ‘जनसत्ता’ और ‘सहारा समय’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में लम्बे समय तक काम करने के बाद वे तीन वर्ष तक नेशनल बुक ट्रस्ट के सलाहकार रहे। उनके पाँच कविता-संग्रह—‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’, ‘नए युग में शत्र’; तीन गद्य-संग्रह—‘एक बार आयोवा’, ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’ और साक्षात्कारों का संकलन प्रकाशित हैं। उन्होंने बेर्टोल्ट ब्रेश्ट, हांस माग्नुस ऐंत्सेंसबर्गर (जर्मन), यानिस रित्सोस (यूनानी), ज़्बग्नीयेव हेर्बेत, तादेऊष रोज़ेविच (पोलस्की), पाब्लो नेरुदा, एर्नेस्तो कार्देनाल (स्पानी), डोरा गाबे, स्तांका पेंचेवा (बल्गारी) आदि की कविताओं का अंग्रेजी से अनुवाद। वे जर्मन उपन्यासकार हेरामन हेस्से के उपन्यास ‘सिद्धार्थ’, अरुंधति रॉय के उपन्यास ‘अपार ख़ुशी का घराना’ के अनुवादक और बांग्ला किव नबारुण भट्टाचार्य  के संग्रह ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’ के सह-अनुवादक रहे। उन्होंने नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, उ.र. अनन्तमूर्ति, गुरदयाल सिंह, कुर्रतुल-ऐन-हैदर जैसे कृति साहित्यकारों पर वृत्तचित्रों के लिए पटकथा-लेखन किया।

प्राय: सभी भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मनी, डच, फ़्रांसीसी, स्पानी, इतालवी, जापानी, पोल्स्की और बल्गारी आदि विदेशी भाषाओं के कई संकलनों और पत्र-पत्रिकाओं में मंगलेश डबराल की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हैं। कुछ अंग्रेज़ी अनुवाद डेनियल वाइसबोर्ट और अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा द्वारा सम्पादित ‘पेरिप्लस’, वाइसबोर्ट और गिरधर राठी द्वारा सम्पादित ‘पोयट्री ऑफ़ सर्वाइवल’, के. सच्चिदानन्द द्वारा सम्पादित ‘जेस्चर्स, एक सौ भारतीय कवियों के संकलन ‘सिग्नेचर्स’ और यूनिस डिसूज़ा द्वारा सम्पादित ‘दीज़ माई वड्र्स’ आदि में संकलित हैं। मरिओला ओफ़्रेदी द्वारा उनके कविता-संग्रह—‘आवाज़ भी एक जगह है’ का इतालवी अनुवाद, ‘अंके ला वोचे ऐ उन लुओगो’ और अंग्रेज़ी अनुवादों का एक चयन ‘दिस नम्बर इज़ नॉट एक्ज़िस्ट’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।

मंगलेश डबराल ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘ओम् प्रकाश स्मृति सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘पहल सम्मान’, हिन्दी अकादमी (दिल्ली) का ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘कुमार विकल स्मृति सम्मान’, ‘गजानन माधव मुक्तिबोध राष्ट्रीय साहित्य सम्मान’, ‘परिवार पुरस्कार’ आदि से सम्मानित किए गए। उन्होंने आयोवा विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम, जर्मनी के लाइपज़िग पुस्तक मेले, रोतरदम के अन्तरराष्ट्रीय कविता उत्सव (2008) और नेपाल, मॉरिशस और मॉस्को की यात्राओं के दौरान कई जगह कविता पाठ किए। मंगलेश जी आजीविका के लिए ताउम्र पत्रकारिता से सम्बद्ध रहे।

निधन : 9 दिसम्बर, 2020

ई-मेल: mangalesh.dabral@gmail.com

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