Ghar Ka Rasta

Edition: 2022, Ed. 4th
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Ghar Ka Rasta
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मंगलेश डबराल की कविता में रोज़मर्रा ज़िन्दगी के संघर्ष की अनेक अनुगूँजें और घर-गाँव और पुरखों की अनेक ऐसी स्मृतियाँ हैं जो विचलित करती हैं। हमारे समय की तिक्तता और मानवीय संवेदनों के प्रति घनघोर उदासीनता के माहौल से ही उपजा है उनकी कविता का दु:ख। यह दु:ख मूल्यवान है क्योंकि इसमें बहुत कुछ बचाने की चेष्टा है। कविता की एक भूमिका निश्चय ही आदमी के उन ऐन्द्रीय और भावात्मक संवेदनों को सहेजने की भी है जिन्हें आज की अधकचरी और कभी-कभी तो मनुष्य-विरोधी राजनीति और एक बढ़ती हुई व्यावसायिक दृष्टि लगातार नष्ट कर रही है।

प्रकृति के साथ मनुष्य के सम्बन्धों पर भी एक हिसाबी-किताबी दृष्टि का ही क़ब्ज़ा होता जा रहा है। मंगलेश की कविता पेड़ को ‘करोड़ों चिड़ियों की नींद’ से जोड़ती हुई जैसे इस तरह के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ ही खड़ी है। महानगर में रहते हुए मंगलेश का ध्यान जूझती हुई गृहस्थिन की दिनचर्या, बेकार युवकों और चीज़ों के लिए तरसते बच्चों से लेकर दूर गाँव में इन्तज़ार करते पिता, नदी, खेतों और ‘बर्फ़ झाड़ते पेड़’ तक पर टिका है। उनकी नज़र उस अघाए हुए वर्ग के बीच जाकर बेचैन हो जाती है जो सब कुछ को बाज़ार-भाव के हवाले करने पर तुला है।

मंगलेश की कविता के शब्द करुण संगीत से भरे हुए हैं। इनमें एक पारदर्शी ईमानदारी और आत्मिक चमक है। लेकिन उनकी कविता अगर हमारे समय का एक शोकगीत है तो आदमी की जिजीविषा की टंकार भी हम उसमें सुनते हैं और उसमें स्वयं अपनी निजी स्थिति का एक साक्षात्कार भी है। बहुत सामान्य-सी लगनेवाली चीज़ों का मर्म भी मंगलेश की कविता इस तरह खोलती है कि उसमें से एक पूरी दुनिया झाँकने लगती है। ‘माचिस की तीली बराबर रोशनी’ इसी तरह की एक पंक्ति है।

दरअसल ‘घर का रास्ता’ की एक से दूसरी कविता तक हमें अनुभवों, बिम्बों और जीवन-स्थितियों का एक ऐसा संसार मिलेगा कि हम रह-रहकर पहचानेंगे कि यह तो हमारा कितना अपना है।

—प्रयाग शुक्ल

 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1988
Edition Year 2022, Ed. 4th
Pages 80p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
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Mangalesh Dabral

Author: Mangalesh Dabral

मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई, 1948 को उत्तराखंड के टिहरी ज़िले के गाँव काफलपानी में हुआ।

‘प्रतिपक्ष’, ‘आसपास’, ‘पूर्वग्रह’, ‘जनसत्ता’ और ‘सहारा समय’ आदि पत्र-पत्रिकाओं में लम्बे समय तक काम करने के बाद वे तीन वर्ष तक नेशनल बुक ट्रस्ट के सलाहकार रहे। उनके पाँच कविता-संग्रह—‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’, ‘नए युग में शत्र’; तीन गद्य-संग्रह—‘एक बार आयोवा’, ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’ और साक्षात्कारों का संकलन प्रकाशित हैं। उन्होंने बेर्टोल्ट ब्रेश्ट, हांस माग्नुस ऐंत्सेंसबर्गर (जर्मन), यानिस रित्सोस (यूनानी), ज़्बग्नीयेव हेर्बेत, तादेऊष रोज़ेविच (पोलस्की), पाब्लो नेरुदा, एर्नेस्तो कार्देनाल (स्पानी), डोरा गाबे, स्तांका पेंचेवा (बल्गारी) आदि की कविताओं का अंग्रेजी से अनुवाद। वे जर्मन उपन्यासकार हेरामन हेस्से के उपन्यास ‘सिद्धार्थ’, अरुंधति रॉय के उपन्यास ‘अपार ख़ुशी का घराना’ के अनुवादक और बांग्ला किव नबारुण भट्टाचार्य  के संग्रह ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’ के सह-अनुवादक रहे। उन्होंने नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, उ.र. अनन्तमूर्ति, गुरदयाल सिंह, कुर्रतुल-ऐन-हैदर जैसे कृति साहित्यकारों पर वृत्तचित्रों के लिए पटकथा-लेखन किया।

प्राय: सभी भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मनी, डच, फ़्रांसीसी, स्पानी, इतालवी, जापानी, पोल्स्की और बल्गारी आदि विदेशी भाषाओं के कई संकलनों और पत्र-पत्रिकाओं में मंगलेश डबराल की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हैं। कुछ अंग्रेज़ी अनुवाद डेनियल वाइसबोर्ट और अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा द्वारा सम्पादित ‘पेरिप्लस’, वाइसबोर्ट और गिरधर राठी द्वारा सम्पादित ‘पोयट्री ऑफ़ सर्वाइवल’, के. सच्चिदानन्द द्वारा सम्पादित ‘जेस्चर्स, एक सौ भारतीय कवियों के संकलन ‘सिग्नेचर्स’ और यूनिस डिसूज़ा द्वारा सम्पादित ‘दीज़ माई वड्र्स’ आदि में संकलित हैं। मरिओला ओफ़्रेदी द्वारा उनके कविता-संग्रह—‘आवाज़ भी एक जगह है’ का इतालवी अनुवाद, ‘अंके ला वोचे ऐ उन लुओगो’ और अंग्रेज़ी अनुवादों का एक चयन ‘दिस नम्बर इज़ नॉट एक्ज़िस्ट’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।

मंगलेश डबराल ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘ओम् प्रकाश स्मृति सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘पहल सम्मान’, हिन्दी अकादमी (दिल्ली) का ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘कुमार विकल स्मृति सम्मान’, ‘गजानन माधव मुक्तिबोध राष्ट्रीय साहित्य सम्मान’, ‘परिवार पुरस्कार’ आदि से सम्मानित किए गए। उन्होंने आयोवा विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम, जर्मनी के लाइपज़िग पुस्तक मेले, रोतरदम के अन्तरराष्ट्रीय कविता उत्सव (2008) और नेपाल, मॉरिशस और मॉस्को की यात्राओं के दौरान कई जगह कविता पाठ किए। मंगलेश जी आजीविका के लिए ताउम्र पत्रकारिता से सम्बद्ध रहे।

निधन : 9 दिसम्बर, 2020

ई-मेल: mangalesh.dabral@gmail.com

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