‘हिन्दी कथा साहित्य : एक दृष्टि’ का प्रयोजन हिन्दी कथा साहित्य की रचनात्मक यात्रा का आलोचनात्मक विवेचन है। सत्यकेतु सांकृत ने गम्भीर अध्ययन के उपरान्त हिन्दी कथा साहित्य की दोनों शाखाओं (उपन्यास तथा कहानी) की संरचना को परखा है। 20वीं सदी के अन्तिम चरण में हिन्दी उपन्यासों की क्या स्थिति थी, इसे स्पष्ट करते हुए लेखक ने उनके सरोकारों को भी टटोला है। प्रेमचन्द, रेणु, राहुल सांकृत्यायन और अन्य रचनाकारों की कथा-यात्रा का विवरण इस पुस्तक के विभिन्न आलेखों में है।
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के साहित्य की थाह लगाते हुए सत्यकेतु एक उचित निष्कर्ष निकालते हैं, ‘प्रेमचन्द भारतीय पुनर्जागरण को उसके व्यापक सन्दर्भ में देखते थे। वे समझते थे कि देश को औपनिवेशिक ग़ुलामी से तभी मुक्ति मिल सकती है जब पूरा देश सामाजिक दृष्टि से लिंग-भेद, धर्म-भेद, जाति-भेद आदि अन्तर्विरोधों से मुक्त हो।’ विभिन्न रचनाओं का ऐसा सूत्रात्मक विश्लेषण पुस्तक को विशिष्ट बनाता है।
प्रायः आलोचनात्मक पुस्तकों में अनुसन्धान का पक्ष क्षीण होता है। पाठक अनुभव करेंगे कि भाषा-संरचना, सरोकार और समेकित प्रभाव को जाँचते हुए लेखक ने एक सन्तुलन रखा है। आलोचना और अनुसन्धान का यह मिश्रण पुस्तक का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। कथा साहित्य में रुचि रखनेवाले पाठकों व शोधार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी पुस्तक है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2013 |
Edition Year | 2013, Ed. 1st |
Pages | 172p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |