Hadapada Appanna-Lingam-Hard Back

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ध्यान करना चाहूँ तो क्या ध्यान करूँ।

मन तेजोहीन धुँधला पड़ गया था, तन शून्य हो गया था।

कायक गुण गल चुका। देह से अहं मिट गया था।

अपने आपसे प्रकाश में झूमते मैं सुखी बनी

अप्पण्णाप्रिय चन्नबसवण्णा॥

 

मन याद कर रहा है।

बुरी विषय वासना की ओर मन बहक रहा है।

डाली की चोटी की ओर जा रहा है मन

मन किसी भी नियम में बँधता नहीं,

छोड़ देने पर मन जाता भी नहीं।

अपनी इच्छा पर मनमानी करते मन को नियम में बाँधकर

लक्ष्य में स्थिर करके शून्य में विहरनेवाले

शरणों के चरणों में मैं समा रही

अप्पण्णाप्रिय चन्नबसवण्णा॥

—लिंगम्मा

 

घास-फूस-कचरा निकालकर स्वच्छ किए

हुए खेत में कूड़ा-करकट बोनेवाले पागलों की तरह

विषय-सुखों के झूठे भ्रम में लोलुप होकर

तकलीफ़ में पड़नेवाले मनुष्य कैसे जान सकते

महाघन गुरु के स्वरूप को?

मरण बाधा में पड़नेवाले आपको कैसे जान सकते हैं

बसवप्रिय कूडल चन्नबसवण्णा? ॥

 

भूख मिटाने अन्न स्वीकार करते हैं,

विषय के मोह में झूठ बोलते हैं,

नए-नए व्यसन में पड़कर

भस्म धारण करके सारा विश्व घूमते हैं।

इस मिथ्या को छोड़कर, माया के धुँधलेपन को दूर किए बिना

नहीं समा सकता हमारा बसवप्रिय कूडल चन्नबसवण्णा॥    

—अप्पण्‍णा

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, Ed. 1st
Pages 96p
Price ₹300.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
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Kashinath Ambalge

Author: Kashinath Ambalge

प्रो. काशीनाथ अंबलगे

आपका जन्म 10 जुलाई, 1947 को मुचलम, बसवकल्याण तालुका, ज़ि‍ला बीदर, कर्नाटक में हुआ।

आपने एम.ए. हिन्दी और कन्नड़ से किया और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वर्षों गुलबर्गा विश्वविद्यालय में अध्यापन। फ़िलहाल सेवानिवृत्त।

आपकी कन्नड़ और हिन्दी में कविता, विमर्श, कन्नड़ वचन साहित्य आदि से सम्बन्धित दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित। पंजाबी, गुजराती, बांग्ला (हिन्दी द्वारा) और हिन्दी की कई पुस्तकों का कन्नड़ में अनुवाद।

आप ‘महात्मा गांधी हिन्दी पुरस्कार’, ‘कमला गोयनका अनुवाद पुरस्कार’, ‘अम्म पुस्तक पुरस्कार’, ‘गौरव पुरस्कार’ आदि पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके हैं।

 

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