Grimm Bandhuon Ki Parikathayen

Translator: Prakash Parihar
Edition: 2013, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Grimm Bandhuon Ki Parikathayen

मोहक, रोचक और विचित्र घटनाओं से भरी परीकथाएँ विश्व की हर भाषा में कही-सुनी जाती हैं। किसी भी आयु का व्यक्ति इन्हें पढ़कर-सुनकर आनन्दित होता है। बचपन तो इन्हीं कथाओं के सहारे कल्पना की रंग-बिरंगी दुनिया में विचरण करता आया है। पशु, पक्षी, राक्षस, परी, जंगल, नदी, पुराना क़िला, जादू, शाप, वरदान, रहस्य, रोमांच, अत्याचार, न्याय, वशीकरण, साहस, चतुराई...आदि को समेटे ये परीकथाएँ आज भी बेमिसाल मनोरंजन का ख़ज़ाना हैं। ‘ग्रिम बन्धुओं की परीकथाएँ’ पुस्तक में ऐसी ही बेहद पठनीय कथाएँ संकलित हैं। ‘खरगोश की दुल्हन', ‘मेढक राजकुमार’, ‘जंगल में तीन बौने’, ‘सफ़ेद साँप’, ‘करामाती टेबिल’, ‘गधा तथा छड़’, ‘स्नोव्हाइट’, ‘कुत्ता और गौरैया’ व ‘सोने का हंस’ आदि सभी परीकथाएँ पाठक को आनन्द से भर देती हैं। इन कथाओं का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में किया जा चुका है। पाठकों के बीच इनकी अपार लोकप्रियता का कारण है मानव मन में उत्सुकता की भावना।

ग्रिम बन्धुओं ने संकलन और पुनर्लेखन करते हुए उत्सुकता तथा रोचकता को और बढ़ा दिया है। मनोरंजन करने के साथ ये कथाएँ किसी न किसी रूप में लोक-व्यवहार या नीति की शिक्षा भी देती हैं। सीधी और सरल भाषा में जीवन के जाने कितने रूप यहाँ व्यक्त हुए हैं। यह पुस्तक पाठकों के लिए मनोरंजन का अनूठा उपहार है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 304p
Translator Prakash Parihar
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Author: J.L.C. Grimm, W.C. Grimm

जे.एल.सी. ग्रिम, डब्ल्यू.सी. ग्रिम

‘द ब्रदर्स ग्रिम’ के रूप में विख्यात जेकब (1785-1863) तथा विल्हेल्म ग्रिम (1786-1859) दोनों भाई जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान्, भाषाशास्त्री, सांस्कृतिक शोधकर्ता और लेखक थे। लोककथाओं के संकलन और प्रकाशन में सिद्धहस्त ब्रदर्स ग्रिम ने ‘सिंड्रेला’, ‘रायुंजेल’, ‘स्नोव्हाइट’ जैसी लोककथाओं को संसार-भर में पहुँचाया। लोककथाओं का उनका पहला संग्रह ‘चिल्ड्रेंस एंड हाउस होल्ड टेल्स’ शीर्षक से 1812 में प्रकाशित हुआ।

दोनों भाइयों का बचपन जर्मनी के हानाउ क़स्बे में बीता। 1796 में उनके पिता का देहान्त हुआ जिसके चलते परिवार को भारी ग़रीबी से गुज़रना पड़ा। मारबर्ग विश्वविद्यालय में दाख़िल होने के दौरान ही दोनों भाइयों का झुकाव लोककथाओं की ओर हुआ जिसके प्रति वे जीवन-भर समर्पित रहे।

19वीं सदी में रोमांटिसिज़्म के उद् भव ने पारम्परिक लोककथाओं की तरफ़ लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इसी माहौल में ग्रिम भाइयों ने लोककथा विधा पर विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए लोक में प्रचलित कहानियों के संग्रहण और रिकॉर्डिंग के लिए अपनी एक पद्धति ईजाद की जो बाद में लोककथा-अध्ययन का आधार बनी। 1812 और 1857 के दौरान उनकी पहली पुस्तक के अनेक संशोधित संस्करण प्रकाशित हुए, और आरम्भ की 86 कहानियाँ धीरे-धीरे 200 तक पहुँच गईं।

लोककथाओं को लिखने और परिवर्द्धित करने के अलावा उन्होंने जर्मन तथा स्कैंडिनेवियन मिथकों का लेखन भी किया और एक जर्मन कोश पर भी काम शुरू किया जो उनके जीवन काल में अधूरा रहा।

दुनिया-भर में प्रसिद्ध इन कहानियों में से बहुत सारी कहानियों पर फ़िल्में भी बनती रही हैं और सौ से ज्यादा भाषाओं में इनका अनुवाद हो चुका है।

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