कैथरीन के एक अधूरे उपन्यास का एक अंश है : “इस जीवन को जियो, जूलियट। क्या शॉपेन अपनी आकांक्षाओं को, अपनी नैसर्गिक इच्छाओं को पूरा करने से डरा था? नहीं, इसीलिए वह इतना महान है। तुम ठीक उसी चीज़ को अपने से दूर क्यों कर रही हो जिसकी तुम्हें ज़रूरत है—परम्पराओं की वजह से? अपनी नैसर्गिकता को इस तरह बौना क्यों बनाती हो, क्यों अपना जीवन बरबाद करती हो?...तुमने उन सबसे आँखें मूँद ली हैं, कान बन्द कर लिए हैं जिसके लिए कोई इनसान जी सकता है।’’ जीने के लिए यह उद्बोधन, परम्पराओं और रूढ़ियों का विरोध, यह विचार कि भविष्य अपनी इच्छाओं से भी बनता है, यह मैन्सफ़ील्ड के लेखन का केन्द्रीय तत्त्व है। यहाँ जो बातें सपाट ढंग से कह दी गई हैं, आगे अपनी कहानियों के ताने-बाने में इस सोच के धागों को करीने से बुनना उसने सीख लिया। सामाजिक यथार्थ, कमज़ोरी के प्रति सहानुभूति और बाद के दौर में, अन्तश्चेतना पर ज़ोर उसकी कहानियों का मूल तत्त्व है। उसके सभी कहानी-संग्रहों का रूसी तथा सोवियत संघ की अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ और वह वहाँ बेहद लोकप्रिय रहीं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2007 |
Edition Year | 2007, Ed. 1st |
Pages | 196p |
Translator | Shahid Akhtar |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |