Chaar Kanya-Paper Back

Author: Taslima Nasrin
ISBN: 9788171198955
Edition: 2009, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
Special Price ₹225.00 Regular Price ₹250.00
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9788171198955
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‘चार कन्या’ में यमुना, शीला, झूमुर और हीरा की कथा है। यमुना एक मामूली लड़की है, उसके भीतर बूँद–बूँद कर जन्म लेती है—अपने अधिकारबोध के प्रति तीव्र जागरूकता। ऐसी सुलझी हुई जागरूक लड़कियों को काफ़ी कुछ भुगतना पड़ता है। समाज के उलटे–सीधे नियम उन्हें बहुत सताते हैं, यमुना को भी ख़ूब सताया। शीला ठगी जाती है अपने प्रेमी द्वारा। ऐसी सैकड़ों शीलाएँ राह में चल–फिर रही हैं पर सभी तो अपनी ज़ुबान पर वे बातें नहीं ला सकतीं, क्योंकि इससे ठगनेवालों पर प्रहार के बजाय शीलाओं पर ही उलटी मार

पड़ती है—समाज उन्हीं पर पत्थर फेंकता है, उनके ही मुँह पर थूकता है।

‘लज्जा’ जैसी चर्चित कृति की लेखिका तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास स्त्री–विमर्श की कई खिड़कियाँ खोलता है, जिससे आती बयार से पाठक अछूता नहीं रह सकता।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2001
Edition Year 2009, Ed. 3rd
Pages 254p
Price ₹250.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Taslima Nasrin

Author: Taslima Nasrin

तसलीमा नसरीन         

जन्म : 25 अगस्त, 1962; बांग्लादेश के मैमनसिंह शहर में।

शिक्षा : विज्ञान की छात्रा। मैमनसिंह मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस.।

लेखन की शुरुआत कविता से मात्र 13 वर्ष की आयु में। प्रथमत: और मूलत: कवयित्री तसलीमा ने स्तम्भकार के तौर पर भी महत्त्वपूर्ण वैचारिक लेखन के ज़रिए पाठकों को गहराई से उद्वेलित किया और अपनी कथा-कृतियों, विशेषकर ‘लज्जा’ उपन्यास के साथ आत्मालोचन की मज़बूत चुनौती के रूप में उपस्थित हुईं। अभिव्यक्ति की स्वाधीनता के लिए न सिर्फ़ ढाका मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के चिकित्सक पद से त्यागपत्र दिया बल्कि ‘देशनिकाला’ के कठिन मार्ग का भी वरण किया। 1994 से उनका बांग्ला देश में और 2007 से पश्चिम बंगाल में प्रवेश निषिद्ध है।

कृतियाँ : ‘शिकड़े बिपुल खुधा’, ‘निर्बासितो बाहिरे ओन्तरे’, ‘अतले अन्तरीण’, ‘बालिकार गोल्लाछूट’, ‘बेहुला एका भासिए छिलो भेला’, ‘आय कष्ट झेंपे-जीबन देबो मेपे’, ‘निर्बासित नारीर कोबिता और जल पद्य’ (कविता)। ‘लज्जा’, ‘फेरा’ व ‘चार कन्या’ (उपन्यास); ‘निर्वासित कलाम’, ‘नष्ट मेयेर नष्ट गद्य’ (स्तम्भ लेख व टिप्पणियाँ); ‘आमार मेये बेला’ (जीवनी) आदि।

'लज्जा’ समेत आपकी कई रचनाओं का दुनिया की तीस भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

सम्मान : दो बार भारत का प्रतिष्ठित 'आनन्द पुरस्कार’ (1991 व 2000 में), स्वीडिश पेन क्लब का ‘कुर्त तुखोलस्की पुरस्कार’ (1994), फ़्रांस का ‘एडिट द नानत पुरस्कार’ (1994); फ़्रांस सरकार का ‘मानवाधिकार पुरस्कार’, ‘शाखारोव पुरस्कार’, गोधेमबर्ग विश्वविद्यालय का ‘मनिसमियेन पुरस्कार’ (1995) और इंटरनेशनल ह्यूमनिस्ट एंड एथिकल यूनियन का 'ह्यूमनिस्ट पुरस्कार’ (1996)। बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय ने 1995 में ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि से सम्मानित किया। सहिष्णुता एवं अहिंसा के प्रसार के लिए 2005 में यूनेस्को से ‘मदनजीत सिंह पुरस्कार’; इनके अलावा भी विश्व के कई देशों द्वारा सम्मानित। हॉर्वर्ड एवं न्यूयॉर्क विश्वविद्यालयों से शोध-वृत्ति। 2009 में अमेरिका की वुडरो विल्सन फ़ेलो रही।

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