Benipuri Granthawali : Vols. 1-8

Collected Works - Rachnawali
Editor: Suresh Sharma
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Benipuri Granthawali : Vols. 1-8
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श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी बीसवीं सदी के उन हिन्दी लेखकों में हैं जिन्होंने साहित्य और पत्रकारिता को नई दिशा दी। साहित्य की विभिन्न विधाओं में उन्होंने श्रेष्ठतम लेखन किया।

कथा-साहित्य और नाटक में नए प्रयोग किए और कालजयी कृतियों की रचना की। इसी तरह राजनैतिक और साहित्यिक दोनों ही तरह की पत्रकारिता को उन्होंने अपनी सशक्त लेखनी से नया रूप दिया।

स्वाधीनता सेनानी बेनीपुरी समाजवाद की राजनीति के आरम्भकर्ताओं में रहे हैं। उनका यह बहुमुखी व्यक्तित्व उन्हें 20वीं सदी के महानायकों की क़तार में खड़ा करता है। ज़िन्दगी की बहुस्तरीय व्यस्तताओं के बावजूद उन्होंने अनवरत साहित्य-लेखन किया और महान साहित्य की रचना की। उनका सम्पूर्ण लेखन अग्रगामी मनुष्य के लिए बहुमूल्य और पाथेय है। बेनीपुरी ग्रन्थावली के आठ खंडों में हम यह दुर्लभ पाथेय प्रस्तुत कर रहे हैं।

ग्रन्थावली के पहले खंड में उनकी कहानियाँ, शब्दचित्र, उपन्यास, ललित निबन्ध, स्मृति चित्र और कविताएँ संकलित हैं। ‘चिता के फूल’ कहानी-संग्रह में शोषित समाज की पीड़ा को अभिव्यक्ति मिली है। ‘लाल तारा’, ‘माटी की मूरतें’ तथा ‘गेहूँ और गुलाब’ नामक शब्द-चित्र संग्रहों की रचनाओं में उन्होंने भारतीय गाँव के किसान-जीवन को सम्पूर्णता में अभिव्यक्त किया है। अपने उपन्यास ‘पतितों के देश में’ के अन्तर्गत उन्होंने भारतीय जेल-जीवन के नरक से साक्षात्कार कराया है। ‘क़ैदी की पत्नी’ में एक स्वाधीनता सेनानी के उपेक्षित परिवार की कहानी कही है। ललित निबन्ध-संग्रह ‘सतरंगा इन्द्रधनुष’ में उन्होंने लोक-संस्कृति के मानवीय स्वरूप और प्रकृति के सौन्दर्य का दिलचस्प चित्रण किया है। ‘गांधीनामा’ में दिवंगत पुत्र के लिए क़ैदी पिता की संवेदनात्मक यादें हैं। इस खंड की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बेनीपुरी की कविताएँ हैं जिनके अप्रकाशित होने की वजह से आलोचकों का ध्यान इस ओर नहीं गया। परिशिष्ट में बेनीपुरी का विस्तृत परिचय तथा उनके गाँव बेनीपुर का वृत्तान्त भी शामिल है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 4150p
Translator Not Selected
Editor Suresh Sharma
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 28
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Editorial Review

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Ramvriksh Benipuri

Author: Ramvriksh Benipuri

रामवृक्ष बेनीपुरी

जन्म : 23 दिसम्बर, 1899, बेनीपुर, मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार)। साधारण किसान परिवार। बचपन में ही माता-पिता का निधन। मैट्रिक की पढ़ाई के लिए मुज़फ़्फ़रपुर गए। उन्हीं दिनों 1920 के असहयोग आन्दोलन में स्कूली शिक्षा छोड़ दी। साहित्य सम्मेलन से विशारद। स्वाधीनता सेनानी के रूप में लगभग नौ साल जेल में रहे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए। दिसम्बर 1959 में पक्षाघात। लम्बी बीमारी। अन्ततः 6 सितम्बर, 1968 को निधन।

सम्पादित पत्र : ‘तरुण भारत’, ‘किसान मित्र’, ‘गोलमाल’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘क़ैदी’, ‘लोक-संग्रह’, ‘कर्मवीर’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘तूफ़ान’, ‘हिमालय’, ‘जनवाणी’, ‘चुन्नू-मुन्नू’ तथा ‘नई धारा’।

प्रमुख कृतियाँ : कहानी-संग्रह—‘चिता के फूल’। शब्दचित्र-संग्रह : ‘लाल तारा’, ‘माटी की मूरतें’, ‘गेहूँ और गुलाब’। उपन्यास—‘पतितों के देश में’, ‘क़ैदी की पत्नी’। ललित-निबन्ध—‘सतरंगा इन्द्रधनुष’। स्मृति-चित्र—‘गांधीनामा’। कविता-संग्रह—‘नया आदमी’। नाटक—‘अम्बपाली’, ‘सीता की माँ’, ‘संघमित्रा’, ‘अमर ज्योति’, ‘तथागत’, ‘सिंहल विजय’, ‘शकुंतला’, ‘रामराज्य’, ‘नेत्रदान’, ‘गाँव का देवता’, ‘नया ‘समाज’ और ‘विजेता’। निबन्ध—‘हवा पर’, ‘नई नारी’, ‘वंदे वाणी विनायकौ’, ‘अत्र तत्र’। आत्मकथात्मक संस्मरण—‘मुझे याद है’, ‘ज़ंजीरें और दीवारें’, ‘कुछ मैं कुछ वे’। यात्रा साहित्य—‘पैरों में पंख बाँधकर’, ‘उड़ते चलो उड़ते चलो’। जीवनी—‘शिवाजी’, ‘विद्यापति’, ‘लंगट सिंह’, ‘गुरु गोविंद सिंह’, ‘रोज लग्ज़ेम्बर्ग’, ‘जयप्रकाश’, ‘कार्ल मार्क्स’। राजनीति—‘लाल चीन’, ‘लाल रूस’, ‘रूसी क्रान्ति’।

इसके अलावा बाल-साहित्य की दर्जनों पुस्तकें तथा ‘विद्यापति पदावली’ और ‘बिहारी सतसई’ की टीका।

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