Azadi Ke Apurva Anubhav

Translator: Ramjay Pratap
Edition: 2019, 1st Ed.
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Azadi Ke Apurva Anubhav
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यह पुस्तक मानव स्वतंत्रता का एक अध्ययन है। इस स्वतंत्रता सम्बन्धी विचार का विकास विभिन्न मुद्दों को लेकर चल रहे संघर्षों और उनके संस्थानीकरण से हुआ है। प्रारम्भ बिन्दु तो वह विचार ही है जो यह बतलाता है कि आज़ादी जीवन का एक आधारभूत सिद्धान्त है, इसलिए यह मनुष्य के लिए बिलकुल नैसर्गिक चीज़ है, इसे दबाया नहीं जा सकता। इस पुस्तक का लक्ष्य स्वतंत्रता का समावेशी इतिहास लिखना नहीं है, बल्कि इसके विकास की अत्यन्त संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत करना है। इसलिए उन कुछ लिपिबद्ध घटनाओं का वर्णन है जो इसके लक्ष्यों में से कुछेक की सिद्धि के रास्ते में निशान बनाती हैं तथा कुछ उन मूल विचारों का वर्णन है जिनके कारण मानवीय सोच इस दिशा में साकार हो सकी। और इस प्रक्रिया में तथ्यों के साथ विचार को प्रकट करने के लिए फ्रांस की क्रान्ति जैसी इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से कुछेक को केवल स्वीकृत सन्दर्भों के रूप में लिया गया है कि तारतम्य बना रहे। पुस्तक में उन घटनाओं पर भी विचार किया गया है जिन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं के लिए तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के निमित्त आधारवस्तु तैयार की।

इस अध्ययन में यूरोपीय देशों में ख़ासकर ब्रिटेन के अनुभवों की विस्तृत चर्चा है। इसका एक कारण यह है कि यूरोप के विकासों का दस्तावेज़ पूरी तरह से लिपिबद्ध है। इसका एक दूसरा कारण भी है कि दुनिया के अनेक हिस्सों में मुक्ति के संघर्ष तो हुए, लेकिन आगे बढ़ने की चाह रखनेवाली मुक्तिधाराओं में से ज्‍़यादातर धाराएँ काल की रेत में खो गईं। एकमात्र धारा जो आज तक विद्यमान है तथा एक शक्तिशाली नदी का रूप धारण कर चुकी है, वह वही धारा है जिसका उद्भव यूरोप में हुआ था। यही स्रोत कि दूसरे लोगों ने भी यूरोपीय विचारों की रोशनी में ग़ुलामी के ख़‍िलाफ़ आवाज़ उठाई और अपनी आज़ादी की फिर से खोज की।

आज हम देखते हैं कि उस आज़ादी के संघर्ष को मानवाधिकारों के संयुक्त राष्ट्र चार्टर के द्वारा संकेतित किया गया है। यह चार्टर स्वयं घटनाओं की वक्रगति की पराकाष्ठा है तथा इसने पूरी तरह सत्ताओं की इच्छा के विपरीत वैसा रूप धारण कर लिया है जो इसके सृजन के लिए जवाबदेह थे। निस्सन्देह, यह पुस्तक वैश्विक परिदृश्य में आज़ादी के संघर्ष को विभिन्न काल-खंडों में देखने-समझने की जिस वैचारिक ज़मीन की रचना करती है, वह अपनी प्रक्रिया में अपूर्व अनुभवों की अपूर्व कथा की तरह है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 139p
Translator Ramjay Pratap
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1.5
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Sachchidanand Sinha

Author: Sachchidanand Sinha

सच्चिदानन्‍द सिन्हा

सच्चिदानन्‍द सिन्हा का जन्म 30 अगस्त, 1928 को मुज़फ़्फ़रपुर ज़‍िले के साहेबगंज के परसौनी ग्राम में हुआ। आपका नाम देश के वरिष्ठ समाजवादी विचारकों में शुमार है। अपने छात्र-जीवन में ही समाजवादी मूल्यों की राजनीति की तरफ़ आकृष्ट हुए। फिर, सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। डॉ. लोहिया की पत्रिका ‘मैनकाइंड’ के सम्पादक मंडल में भी रहे और बाद के दिनों में अपने मित्र किशन पटनायक की वैचारिक पत्रिका ‘सामयिक वार्ता’ के सम्पादकीय सलाहकार रहे। आपने अंग्रेज़ी तथा हिन्दी में दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें महत्त्वपूर्ण हैं : ‘सोशलिज्म एंड पावर’, ‘कियोस एंड क्रिएशन’, ‘कास्ट सिस्टम : मिथ रियलिटी एंड चैलेंज’, ‘कोएलिशन इन पॉलिटिक्स’, ‘इमर्जेन्सी इन परस्पेक्टिव’, ‘इंटरनल कॉलोनी’, ‘दी बिटर हार्वेस्ट’, ‘सोशलिज्म : ए मैनिफेस्तो फ़ॉर सरवाइवल’, ‘समाजवाद के बढ़ते चरण’, ‘वर्तमान विकास की सीमाएँ’, ‘पूंजीवाद का पतझड़’, ‘संस्कृति विमर्श’, ‘मानव सभ्यता और राष्ट्र-राज्य’, ‘संस्कृति और समाजवाद’, ‘पूँजी का चौथा अध्याय’, ‘भारतीय राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता’ इत्यादि।

 

 

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