Adamkhoron Ke Beech-Hard Back

Author: Ramesh Bedi
Special Price ₹590.75 Regular Price ₹695.00
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ISBN:9788126701322
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9788126701322

भारत में हर साल बड़ी संख्या में निर्दोष लोग आदमख़ोर शेरों और तेन्‍दुओं के शिकार होते हैं। इन मांसाहारी पशुओं का स्वाभाविक आहार वन्य प्राणी हैं तो फिर ये इन्सानों को क्यों खाने लगते हैं? क्या इन बेगुनाह लोगों के जीवन की रक्षा की जा सकती है? इस पुस्‍तक में आदमख़ोरों के बीच लोमहर्षक शिकार-कथाओं के साथ-साथ इन प्रश्नों के जवाब देने की कोशिश भी की गई है।

प्राणिजगत के विशेषज्ञ लेखक स्वयं प्रभावित इलाक़ों में रहे हैं तथा इस विषय का बारीकी से अध्ययन किया है। देश के बँटवारे के बाद अधिकांश जगहों पर जंगलों का सफ़ाया कर दिया गया। अब वहाँ जिधर नज़र दौड़ाएँ बस गन्ने के खेत नज़र आते हैं जिनमें आदमख़ोरों ने डेरा डाला हुआ है। ये खेत इनके क़िले बने हुए हैं। एक चालाक आदमख़ोर शेरनी का शिकार करने की मुहिम के सिलसिले में लेखक को इन्हीं खेतों के बीच फूस के छप्पर के नीचे मौत के साए में सोना पड़ा।

लेखक ने उन लोगों की करुण दास्तान सुनी जिनके प्रियजन आदमख़ोरों का शिकार बन चुके थे। उन्हें ऐसे साहसी लोग भी मिले जो मौत के मुँह से बच निकले थे।

शेर-तेन्‍दुए के हमलों का कारण कुछ हद तक स्वयं मनुष्य भी है। लेखक का मानना है कि लोगों को वन, वन्य प्राणियों, ख़ासकर शेर, तेंदुए तथा अन्य हिंसक जानवरों की आदतों, उनके रहन-सहन और उनकी जीवन-पद्धति के बारे में सही जानकारी देने से ये ख़तरे टल सकते हैं, और जिन्दगी के खाते में दर्ज की जानेवाली मृत्यु-संख्याएँ कम हो सकती हैं।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2001
Pages 243p
Price ₹695.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3
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Ramesh Bedi

Author: Ramesh Bedi

रामेश बेदी

बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न लेखक और प्रकृति के कुशल फ़ोटोग्राफ़र।

जन्म : 20 जून, 1915; कालाबाग़, उत्तर-पश्चिमी सीमा-प्रान्त (अब पाकिस्तान)।

शिक्षा : गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में अन्तेवासी के रूप में। जंगल के जीव-जन्तुओं के  अध्ययन, उनकी फ़ोटोग्राफ़ी तथा फ़‍िल्मिंग के दौरान श्री रामेश बेदी ने महीनों नेशनल पार्कों और अभयवनों में गुज़ारे। निरन्तर सान्निध्य से वन्य-जीवों के स्वभाव और उनकी संवेदनशील जीवन-शैली की बारीकियों को समझा। फलस्वरूप, ख़ूँख़ार समझे जानेवाले जानवरों और श्री बेदी के बीच की खाईं कमोबेश पट गई थी।

कृतियाँ : जीव-जन्तु विषयक पुस्तकें —‘आदमख़ोरों के बीच’, ‘गैंडा’, ‘सिंह’, ‘सिंहों के जंगल में’, ‘तेन्‍दुआ और चीता’, ‘कबूतर’, ‘गजराल’, ‘चरकसंहिता के जीव-जन्तु’, ‘जंगल की बातें’ आदि। वनस्पतियों सम्बन्धी पुस्तकें —‘गुणकारी फल’, ‘मानव उपयोगी पेड़’, ‘जंगल की जड़ी-बूटियाँ’, ‘जंगल के उपयोगी वृक्ष’ आदि। यात्रा-वृत्तान्त और कुछ अंग्रेज़ी की पुस्तकें भी प्रकाशित। कुछ पुस्तकें रूसी, पंजाबी, कन्नड़, ओड़िया, बंगाली, गुजराती, मराठी में अनूदित-प्रकाशित। अनेक लेख अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, जापानी, इतालवी, नेपाली, मराठी, मलयालम आदि में अनूदित-प्रकाशित।

यात्रा : अनुसन्धान कार्यों के सिलसिले में लन्दन, ब्राज़ील, कनाडा, भूटान और श्रीलंका की यात्रा।

सम्मान : हिन्दी अकादमी, दिल्ली और संस्कृत अकादमी, दिल्‍ली द्वारा प्रशस्ति-पत्र एवं ‘साहित्यिक कृति सम्मान’, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा ‘मेदिनी पुरस्कार’, ‘इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार’ (मरणोपरान्‍त) आदि।

निधन : 9 अप्रैल, 2003

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