बनारसीदास जैन ने 'अर्धकथा' (1641) में लिखा कि 'गर्भित कथा कहाँ हिय खोल।' छिपाए जानेवाले या कहें कि गोपन प्रसंगों को भी दिल खोलकर अथवा खुलकर बताना आत्मकथा को प्रसिद्धि दिलाता है, निवैयक्तिक बनाता है। आत्मकथा चर्चित विधा है और आत्मकथा- लेखन की एक समृद्ध परम्परा है, लेकिन यह आलोचना से परे विधा हो, ऐसा भी नहीं है। बाबू बनारसीदास चतुर्वेदी ने आत्मकथा लेखक की पात्रता का सवाल उठाया था। चतुर्वेदी जी ने 'जागरण' में यह सवाल उठाया था कि आत्मकथा किसे लिखनी चाहिए। भाव यह था कि आत्मकथा किसे नहीं लिखनी चाहिए। हालाँकि उनके द्वारा तय की गई शर्तों पर आगे लोगों ने आत्मकथा लिखी, ऐसा भी नहीं है। जब प्रेमचन्द ने 'हंस' का आत्मकथांक (1932) निकाला तो नन्ददुलारे वाजपेयी ने यह कहकर विरोध किया था कि इससे आत्म-विज्ञापन का भाव बढ़ेगा जो कि हिन्दी के हित में नहीं होगा।
लेखिकाओं की आत्मकथा में स्त्री-वेदना के विविध स्वर सुनाई पड़ते हैं। इनकी वेदना समस्त स्त्रियों को शोषण के खिलाफ विरोध की ताकत देती है। इन्होंने अपने आत्मकथा-साहित्य के द्वारा जहाँ स्त्री करुणा, शोक, वेदना, विवशता को व्यक्त किया वहीं उसे हिंसा, शोषण, अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने की शक्ति भी प्रदान की। इन्होंने स्त्री स्वतन्त्रता, समानता, सम्मान, सहभागिता इत्यादि जैसे प्रश्नों पर विचार करते हुए पितृसत्तात्मक व्यवस्था से स्त्री-मुक्ति की भी वकालत की।
आत्मकथाओं में अपने भीतर की यात्रा के जरिये बाहर का जो सफ़र तय होता है उसमें केवल अपनी दुनिया की ही बात नहीं होती है पूरा सामयिक सन्दर्भ आ जाना स्वाभाविक है। दलित आत्मकथाओं को आत्मकथात्मक उपन्यास यूँ ही नहीं कहा जाता है। जीवन का पूरा विस्तार है यथार्थ को देखने की एक नई दृष्टि के साथ ये आत्मकथाएँ हिन्दी साहित्य के मुख्य धारा के साहित्य की चेतना को झकझोरती हैं और उसकी चली आ रही परम्परा में एक तरह की वैचारिक हलचल पैदा करती हैं, दलित आत्मकथाएँ, साहित्य की दुनिया में निर्मित 'औदात्य' की धारणा को बदलकर रख देती हैं और जीवन के नए-नए मुहावरों के बीच अपने पाठकों को ले जाकर खड़ा करती हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2025 |
Edition Year | 2025, Ed. 1st |
Pages | 256p |
Price | ₹200.00 |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1.5 |