आदिवासी साहित्य-यात्रा के विभिन्न पड़ावों को विभिन्न लेखकों-विशेषज्ञों ने अपने-अपने ढंग से लिखे लेखों में व्यक्त किया है, जो इस पुस्तक में संगृहीत हैं। उन्हीं की भाषा-बोली में व्यक्त आदिवासियों की ज़िन्दगी और उनकी चेतना का सटीक और सही चित्रण करनेवाली इस पुस्तक का सम्पादन रमणिका गुप्ता ने किया है।
सदियों तक साधी गई चुप्पी को तोड़कर स्थापितों द्वारा बनाए दायरे को विध्वंस करने की चेतना अब आदिवासियों में जन्म ले चुकी है। बदलते परिवेश में वो अपने विस्थापन और सफलता से दूर रखे जाने के षड्यंत्र को भलीभाँति पहचान चुके हैं।
जीवन के अनेक पहलुओं से रू-ब-रू कराता आदिवासी लेखन संघर्ष, उल्लास और आक्रामकता का साहित्य है। छल-कपट, भेदभाव, ऊँच-नीच से दूर तथा सामाजिक न्याय का पक्षधर इस साहित्य का आधार आदिवासियों की संस्कृति, भाषा, इतिहास, भूगोल तथा उनके जीवन की अनेक समस्याओं और प्रकृति के प्रति उनका गहरा लगाव है।
यह पुस्तक आदिवासी लोगों के जीवन की अनेक बारीकियों का चिन्तन व मनन तथा उनके विषय में अधिक से अधिक जानने की जिज्ञासा को बढ़ाती है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2023, Ed. 6th |
Pages | 240p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |