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Viveki Rai : Anchlikta Aur Lok Jivan-Hard Cover

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9789386863584
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विवेकी राय हिन्दी साहित्य के पांक्तेय साहित्यकार हैं। उनके लेखन का समग्र रूप गाँव, किसान और उनकी दशा-दुर्दशा पर केन्द्रित है। वैसे तो गाँव को केन्द्र में रखकर लिखनेवाले साहित्यकार और भी हैं पर विवेकी राय ऐसे रचनाकार हैं जिनका सम्पूर्ण उर्वर और लेखकीय ऊर्जा का कालखंड गाँव में बीता।

कोई भी लेखक तभी सफल होता है जब वह जो लिखता है, वही जीता है अर्थात् जो गाँव में रहा नहीं, गाँव की प्रकृति, उसके सौन्दर्य और खुलेपन को अपनी आँखों से निहारा नहीं, गाँववालों के सीधे-सरल व्यवहार के साथ समरस नहीं हुआ, खेती, किसानी गाय-बैल से जुदा नहीं, वह गाँव का आत्मीय चित्र प्रस्तुत करने में उतना समर्थ नहीं हो सकता, जितना स्वयं गाँव को भोगनेवाला या गाँव को ही जीनेवाला लेखक समर्थ हो सकता है।

विवेकी राय ऐसे ही विरल रचनाकारों में से एक हैं जिन्होंने गाँव को जिया है।

यह पुस्तक विशेष रूप से विवेकी राय के साहित्य पर आंचलिकता और लोकजीवन के प्रभाव को दर्शाती है। उनके साहित्य के साथ ही उनके व्यक्तित्व दर्शन की दृष्टि से भी महत्त्व रखती है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2017
Edition Year 2017, Ed. 1st
Pages 222p
Price ₹500.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Vinamra Sen Singh

Author: Vinamra Sen Singh

विनम्र सेन सिंह

कवि एवं समीक्षक डॉ. विनम्र सेन सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में 15 नवम्बर 1988 को एक साहित्यिक परिवार में हुआ। आरम्भिक शिक्षा आजमगढ़ से ही प्राप्त कर स्नातक हेतु इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया।

दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से शोध की उपाधि हेतु विवेकी राय के कथेतर गद्य में आंचलिकता और लोकजीवन' पर मौलिक कार्य किया। वर्ष 2016 से 2018 तक बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन किया एवं वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।

'मार्क्सवादी आलोचना का विकास' पहली पुस्तक है। इसके अतिरिक्त 'अपना भारत देश महान', 'विवेकी राय: आंचलिकता और लोक जीवन, आदि इनकी मौलिक पुस्तकें हैं। इसके अतिरिक्त रामचरित उपाध्याय रचनावली के सह-सम्पादक के रूप में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। 'काली मिट्टी पर पारे की रेखा' जैसी चर्चित पुस्तक के सह-सम्पादक के रूप में भी उल्लेखनीय कार्य किया। 'श्यामल घट: अमृत कलश' सहित अन्य कई पुस्तकों का सम्पादन किया। पत्र-पत्रिकाओं में शोध आलेख, कविताएँ, कहानियाँ एवं ललित निबन्ध प्रकाशित होते रहते हैं।

प्रयागराज में 'नया परिमल' नामक साहित्यिक संस्था की स्थापना कर उसके सचिव के दायित्वों का निर्वहन करते हुए साहित्य के निर्माण में अपना योगदान दे रहे है।

सम्पर्क : 6-एफ, बैंक रोड, विश्वविद्यालय शिक्षक आवास, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज- 211002

ई-मेल : vinamra1234@gmail.com

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