Vichar Ka Kapda-Hard Back

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‘‘क़ायदे से अनुपम मिश्र न लेखक थे, न पत्रकार। वे साफ़ माथे के एक आदमी थे जो हर हालत में माथा ऊँचा और साफ़ रखना चाहते थे। उनकी निराकांक्षा उनकी बुनियादी बेचैनियों को ढाँप नहीं पाती थी। ये बेचैनियाँ ही उन्हें कई बार ऐसे प्रसंगों, व्यक्तियों, घटनाओं, वृत्तियों को खुली नज़र देखने-समझने की ओर ले जाती थीं। उनकी संवेदना में ऐसी ऐन्द्रियता थी कि वे विचार का कपड़ा भी पहचान लेती थीं। कुल मिलाकर अनुपम मिश्र की अकाल मृत्यु के बाद शेष रह गई सामग्री में से किया गया यह संचयन हिन्दी में सहज, निर्मल और पारदर्शी, मानवीय गरमाहट से भरे गद्य का विरल उपहार है। हमें मरणोत्तर अनुपम मिश्र को उनकी भरी-पूरी जीवन्तता में प्रस्तुत करने में प्रसन्नता है।”

—अशोक वाजपेयी

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, 1st Ed.
Pages 454p
Price ₹1,195.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 14 X 4
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Anupam Mishra

Author: Anupam Mishra

अनुपम मिश्र

(5 जून, 1948-19 दिसम्बर, 2016)

पिता : स्वर्गीय श्री भवानीप्रसाद मिश्र

जन्म स्थान : वर्धा (महाराष्ट्र)

शिक्षण योग्यता : एम. ए.

दक्षता : फ़ोटोग्राफ़ी एवं लेखन

वर्ष १९७७ में पर्यावरण कक्ष के संचालक के रूप में गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान से जुड़े। पारम्परिक जल संरक्षण के लिए वर्ष १९९२ में के.के. बिड़ला फ़ेलोशिप।

मुख्य कृतियाँ : छोटी-बड़ी २० किताबें, जिनमें प्रमुख हैं–आज भी खरे हैं तालाब, राजस्थान की रजत बूँदें, साफ़ माथे का समाज, महासागर से मिलने की शिक्षा, अच्छे विचारों का अकाल।

आज भी खरे हैं तालाब और राजस्थान की रजत बूँदे का समाज ने अच्छा स्वागत किया है। आज भी खरे हैं तालाब  का उर्दू, बाङ्ला, मराठी, गुजराती, पंजाबी और अँग्रेज़ी तथा राजस्थान की रजत बूँदे के फ्रेंच, अँग्रेज़ी, बाङ्ला अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। इनके अलावा अकाल की परिस्थितियों में देश के ११ आकाशवाणी केन्द्रों ने इन पुस्तकों को पूरा का पूरा प्रसारित किया है।

सम्मान : इन्दिरा गाँधी वृक्षमित्र पुरस्कार, १९८६, चन्द्रशेखर आज़ाद राष्ट्रीय पुरस्कार, जमनालाल बजाज पुरस्कार, वैद सम्मान, दिल्ली हिन्दी अकादेमी सम्मान।

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