Vibhajan Ki Asali Kahani

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Vibhajan Ki Asali Kahani
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‘विभाजन की असली कहानी’ सत्ता एवं विश्वासघातों का वह आख्यान है जो उद्घाटित करता है कि भारत के बँटवारे के समय अंग्रेजों के असल उद्देश्य क्या थे और किस तरह भारतीय नेतृत्व उनसे मात खा गया।
भारत के विभाजन एवं अंग्रेजों की आशंकाओं के मध्य निर्णायक कड़ी थी—सोवियत संघ का मध्य-पूर्व में ऊर्जा के (तैल) कूपों पर नियंत्रण जिस पर इतिहासकारों एवं विश्लेषकों ने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। ब्रिटिश नेताओं ने जब भाँप लिया कि भारतीय राष्ट्रवादी नेता सोवियत संघ के विरुद्ध महाखेल में उनका सहयोग नहीं करेंगे तब उन्होंने ऐसी परिस्थिति तैयार करने की सोची जो उनका मन्तव्य पूरा करने में सहायक हो। इस प्रक्रिया में, वे अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु ‘इस्लाम’ का राजनीतिक इस्तेमाल करने में भी नहीं हिचके। किस तरह परदे के पीछे इस योजना की कल्पना की गई और कैसे इसे कार्यान्वित किया गया—यही सब ‘विभाजन की असली कहानी’ की विषयवस्तु है।
लेखक द्वारा खोज निकाले गए अतिगोपनीय दस्तावेजी सबूत महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड लुइस माउंटबेटन, विंस्टन चर्चिल, क्लीमेंट एटली, लॉर्ड आर्चिबाल्ड वेवल, जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, सरदार पटेल, वी.पी. मेनन एवं कृष्णा मेनन जैसी कई विशिष्ट हस्तियों पर नई रोशनी डालते हैं। पुस्तक की विषयवस्तु उन अल्पज्ञात तथ्यों को भी प्रकाश में लाती है जिनका सम्बन्ध अमेरिका द्वारा एक नई उत्तर-औपनिवेशिक विश्व-व्यवस्था विकसित करने की आशा में सहयोग के अतिरिक्त, भारत की स्वतन्त्रता के पक्ष में ब्रिटेन पर बनाए गए परोक्ष दबाव से है। लेखक ने वर्तमान कश्मीर समस्या के मूल कारणों और संयुक्त राष्ट्र में इस मामले पर हुए विचार-विमर्श की रूपरेखा भी यहाँ प्रस्तुत की है।
‘विभाजन की असली कहानी’ पुस्तक वर्तमान भारतीयों के लिए एक चेतावनी है कि वे उस अति आदर्शवाद, अतिगर्व एवं पलायनवाद से बचें जिनके शिकार उनके कुछ पूर्वज हुए।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2022, Ed. 5th
Pages 407p
Translator Varsha Surve
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2.5
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Narendra Singh Sarila

Author: Narendra Singh Sarila

नरेन्द्र सिंह सरीला

 

2 फरवरी, 1927 को जन्मे नरेन्द्र सिंह सरीला केन्द्रीय भारत में सरीला रियासत के उत्तराधिकारी थे। वे पहले लॉर्ड माउंटबेटन के ए.डी.सी. रहे, बाद में भारतीय विदेश सेवा से जुड़े, जहाँ उन्होंने 1948 से 1985 तक कार्य किया। वे संयुक्त राष्ट्र में, भारतीय प्रतिनिधिमंडल में उप स्थायी प्रतिनिधि थे। साथ ही, 1960 के दशक के अन्त में वे ‘पाकिस्तान एंड इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेसंश डिविजंस, नई दिल्ली’ के अध्यक्ष भी रहे।

बाद में, उन्होंने स्पेन, ब्राजील, लीबिया, स्विट्जरलैंड (वैटिकन के समवर्ती प्रत्यायन सहित) एवं फ्रांस में भारत के राजदूत के रूप में सेवा की। सेवामुक्ति के पश्चात् वे नेस्ले इंडिया बोर्ड के अध्यक्ष रहे। वे अन्तरराष्ट्रीय मामलों के समीक्षक रहे और ‘इंटरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून’ एवं ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ जैसे विभिन्न समाचार-पत्रों के लिए लेखन-कार्य भी किया।

निधन : 2 जुलाई, 2011

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