Vaijyanti : Vol. 1-2-Hard Cover

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ISBN:9788180315244
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‘वैजयंती’ श्रीकृष्ण के जीवन, कर्म, आदर्शों, विचारों और अलौकिक प्रेम की रसभीगी अनुपम गाथा है। ग्रामीण परिवेश में पले कृष्ण का विकास विविध दिशाओं में होता है और वह शीघ्र ही एक अपूर्व रंग-बिरंगे बहुआयामी व्यक्तित्व से सम्पन्न हो जाता है। ‘वैजयंती’ में ब्रज की सोंधी सुवास और छाछ है, वेणुवादन, आनन्द और महारास है। किन्तु रह-रहकर श्रीकृष्ण के अन्तर में एक अजानी-सी पुकार उठती है, आह्वान करती है, चल पड़ने को। कुछ विशिष्ट करने को। और श्रीकृष्ण जननायक बन चल पड़ते हैं क्रान्ति का शंखनाद करके कंस के अधिनायक तंत्र का मूलोच्छेदन करने। राधा नहीं रोकती। वह बाधा नहीं, राधा है।

प्रथम खंड में स्वप्नलोकीय कोमलता और माधुरी है, गीत, प्रीति और लालित्य के मध्य शस्त्रों की झनझनाहट है। वहीं द्वितीय खंड में क्रूर यथार्थ है और टंकारों तथा हुंकारों के मध्य प्रेम की मृदुल फुहारें और प्रीति-विह्वल मन की गुहारें हैं।

चारों ओर फैली अराजकता, अनैतिकता और स्वेच्छाचारिता के विरुद्ध कर्मयोगी का संघर्ष चलता है और उनकी वैजयंती पताका सदा फहराती रहती है। वैजयंती में पाठक पाएँगे राधा, गोप-गोपी, रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती तथा सुभद्रा को एक अनूठे ही रंग में। पाठक यह भी पाएँगे अर्जुन, विदुर, भीष्म, कर्ण, संजय और उद्धव को अनूठे स्वरूप में। भीष्म और विदुर को कैसे ज्ञात हुआ था कि कर्ण कुन्ती का पुत्र है? अपने पौत्रवत् श्रीकृष्ण को देखते ही भीष्म का मुखमंडल खिल क्यों पड़ता है? अर्जुन में ऐसा क्या है जो श्रीकृष्ण उस पर मुग्ध हैं? उद्धव में क्या विशेषता है जो उन्हें ही कृष्ण अपनी थाती सौंपते हैं? संजय और धनंजय ही गीता सुनने के अधिकारी क्यों हुए?

और फिर....राधा का क्या हुआ?

‘वैजयंती’ में कुछ नवीन न हो तो भी कुछ अपने आप अलग और विशिष्ट अवश्य है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 982p
Price ₹2,850.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 6
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Author: Chitra Chaturvedi ‘Kartika’

चित्रा चतुर्वेदी कार्तिका

जन्म : 20 सितम्बर, 1939; ग्राम—होलीपुरा, ज़िला—आगरा, (उ.प्र.)।

शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा ग्वालियर, इन्दौर तथा जबलपुर में। इलाहाबाद यूनिर्विसटी से सन् 1962 में राजनीतिशास्त्र में एम.ए. तथा 1967 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

गतिविधियाँ : शासकीय महाकौशल कला एवं वाणिज्य स्वशासी महाविद्यालय, जबलपुर, में राजनीतिशास्त्र की अध्यापिका।

साहित्य-सेवा : पिताश्री स्वर्गीय न्यायमूर्ति ब्रजकिशोर चतुर्वेदी (म.प्र. हाईकोर्ट) उद्भट विधिशास्त्री, निर्भीक न्यायाधीश, स्वतंत्र विचारक होने के अतिरिक्त अपने समय के श्रेष्ठ साहित्य समीक्षक, लेखक तथा व्यंग्यकार थे। अत: ‘कार्तिका’ को बचपन से ही साहित्यिक परिवेश मिला।

आकाशवाणी से प्रहसन, नाटक, वार्ताएँ प्रसारित। पत्र-पत्रिकाओं में लेख, व्यंग्य, कविताएँ, कहानियाँ व समीक्षाएँ आदि प्रकाशित।

दो उपन्यास प्रकाशित : ‘महाभारती’ तथा ‘तनया’। एक व्यंग्य संकलन : ‘अटपटे बैन’।

सम्मान : महाभारती : 1989 में ‘उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत’। 1993 में म.प्र. ‘साहित्य परिषद द्वारा पुरस्कृत’।

निधन : 8 सितम्बर, 2009

 

 

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