Rudra Samagra

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रामगोपाल शर्मा ‘रुद्र’ उत्तर-छायावाद काल के ऐसे कवि हैं, जो आधी शताब्दी से अधिक समय तक शब्द ब्रह्म की साधना में लीन रहे और उसकी लीलाएँ स्वयं देखते तथा हिन्दी काव्य प्रेमियों को दिखाते रहे। मस्ती, जिंदादिली और फक्कड़पन उनकी भी कविता का मिजाज है, लेकिन उनकी विशिष्टता यह है कि इसके साथ उनमें शास्त्रज्ञता और कलामर्मज्ञता का अद्भुत मेल है। ‘रुद्र’ जी ने अंतःप्रेरणा से कई शैलियों में काव्य-रचना की है। कभी उनकी शैली सरल है, कभी संस्कृतनिष्ठ और कभी उर्दू के लहजे से प्रभावित। सर्वत्र उनमें एक विदग्धता मिलती है, जिसे देखकर ही निराला ने उनके संबंध में अपना यह मत प्रकट किया था कि वे हिन्दी के एक ‘पाएदार शायर’ हैं। उनके शब्द जितने सटीक और व्यंजक हैं, बिंब उतने ही भास्वर।
धीरे-धीरे ‘रुद्र’ जी की अभिव्यक्ति सघन होती गई है, उनमें अर्थ-संकुलता बढ़ती गई है और उनके छंद छोटे होते गए हैं। लेकिन ताज्जुब है, इस दौर में भी उन्होंने ‘बंधु ! जरूरी है मुझको घर लौटना’ जैसे सरल गीत रचे, जो पुरानी और नई पीढ़ी के काव्यप्रेमियों को समान रूप से प्रिय हैं।
एक विद्वान् ने उनके संबंध में यह राय जाहिर की है कि चूंकि उन्होंने आलोचकों के कहने पर अपना मार्ग नहीं बदला, इसलिए वे उस पर काफी दूर निकल गए हैं। निश्चय ही इस कथन में सच्चाई है, क्योंकि उनके काल के अनेक कवि जहाँ अपनी जमीन छोड़कर अपनी चमक खोते गए हैं, या फिर धर्म और दर्शन की शरण में जाकर कोरे पद्यकार बनकर रह गए हैं, वहाँ ‘रुद्र’ जी की संवेदना लगातार गहरी होती गई है। प्रत्येक पीढ़ी के कवि अपने ढंग से समकालीन जीवन को प्रतिध्वनित करते हैं। ‘रुद्र’ जी साठ वर्षों के अपने कवि-जीवन में कभी अगतिक नहीं हुए और अपनी कविता में बदलती जीवन स्थितियों की अभिव्यक्ति करते रहे।
‘रुद्र समग्र’ क्यों? इसलिए कि इस लापरवाह, लेकिन बेहद खूबसूरत कवि की कविता को विस्मृत होने से बचा लिया जाए। यह वह कविता है, जो अपनी सीमाओं में हिन्दी कविता के एक महत्त्वपूर्ण दौर का ऐतिहासिक अभिलेख है और जिसका हिन्दी कविता के परवर्ती विकास में किसी न किसी रूप में योगदान भी है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 1991
Edition Year 2022, Ed 2nd
Pages 358p
Translator Not Selected
Editor Nandkishore Naval
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Author: Ramgopal Sharma 'Rudra'

रामगोपाल शर्मा 'रूद्र'

उत्तर- छायावाद काल के विशिष्ट कवि रामगोपाल शर्मा 'रुद्र' का जन्म 1 नवम्बर, 1912 को दानापुर, पटना, बिहार में हुआ था। उन्होंने देवघर विद्यापीठ से हिन्दी साहित्यालंकार की उपाधि प्राप्त की। पेशेवर जीवन की शुरुआत अध्यापन से की। बाद में बिहार सरकार के राजभाषा विभाग में अनुवादक के रूप में कार्य किया।

वे 1925 से काव्य-रचना करने लगे थे। उनकी प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं—शिंजिनी (1946), द्रोण (1950), मूर्च्छना (1954), हिमशिखर (1954), भागीरथी (1960), मीड़ (1963) और शब्दवेध (1991)। आधा दर्जन बालोपयोगी पुस्तकें भी प्रकाशित हैं।

बिहार सरकार के राजभाषा विभाग ने उन्हें 'दिनकर पुरस्कार' (1991) से सम्मानित किया था।

19 अगस्त, 1991 को उनका निधन हो गया।

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