Ranu Aur Bhanu

Fiction : Novel
Translator: Amar Goswami
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Ranu Aur Bhanu
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रवीन्द्रनाथ को प्रतिदिन पूरे भारत से सैकड़ों चिट्ठियाँ मिलती थीं। वे यथासम्भव उनका जवाब भी देते थे। एक दिन एक पत्र पाकर कवि को बड़ा कौतुक महसूस हुआ। उस पत्र को वाराणसी से रानू नामक एक बालिका ने लिखा था। इसी उम्र में वह कवि का काफ़ी साहित्य पढ़ चुकी थी। वे ही उसके सबसे क़रीबी व्यक्ति हो गए थे। उसकी शिकायत थी कि कवि इन दिनों इतनी कम कहानियाँ क्यों लिख रहे हैं। कवि ने उस बालिका के पत्र का जवाब दे दिया।

अपने गृहस्थ जीवन में रवीन्द्रनाथ को कभी मानसिक सुख-शान्ति नहीं मिली थी। अचानक एक दिन लम्बी बीमारी भोगने के बाद कवि की प्रिय बड़ी बेटी माधुरी लता का देहावसान हो गया। कवि टूट गए। उसी दिन अशान्त चित्त से एक भाड़े की गाड़ी लेकर वे भवानीपुर पहुँचे। नम्बर ढूँढ़कर एक घर के सामने रुककर उन्होंने पुकारा—रानू! रानू!

अपना नाम सुनते ही तेज़ी से एक बालिका नीचे उतर आई। कवि अपलक उसे देखते रह गए। यह वे किसे देख रहे थे? यह परी थी या स्वर्ग की कोई अप्सरा! उसी दिन अट्ठावन वर्षीय कवि से उस बालिका का एक विचित्र रिश्ता क़ायम हो गया। रानू कवि के खेल की संगिनी बन गई। नई रचनाओं की प्रेरणादात्री, उनकी खोई ‘बउठान’।

और रानू के लिए कवि हो गए उसके प्रिय भानु दादा।

कवि के चीन-भ्रमण के समय उनकी अनुपस्थिति में रानू की शादी तय हो गई। रानू अब सर राजेन मुखर्जी के पुत्र वीरेन की पत्नी बन गई। दो सन्तानों की माँ।

कवि अब वृद्ध थे। उन्हें जीवन के अन्तिम दिनों में रानू से क्या मिला? वह क्या सिर्फ़ ‘आँसुओं में दु:ख की शोभा’ बनी रह गई?

सुनील गंगोपाध्याय की क़लम से एक अभिनव और अतुलनीय उपन्यास।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2003, Ed. 1st
Pages 130p
Translator Amar Goswami
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Editorial Review

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Sunil Gangopadhyay

Author: Sunil Gangopadhyay

सुनील गंगोपाध्याय

शिक्षा : कोलकाता विश्वविद्यालय से एम.ए.।

लेखन की शुरुआत कविताओं से हुई। 'कृत्तिवास’ पत्रिका के संस्थापक-सम्पादक। पहला उपन्यास 'आत्मप्रकाश’ जो 'देश’ पत्रिका के शारदीय विशेषांक में छपा।

पहला कविता-संग्रह ‘एका एवं कयेकजन’ (अकेले एवं कई लोग)। बच्चों के लेखक के रूप में भी उतने ही लोकप्रिय।

‘नील लोहित’ के नाम से भी काफ़ी लिखा। 'सनातन पाठक’ तथा 'नील उपाध्याय’ आपके दो और लेखकीय छद्म नाम हैं।

राजकमल प्रकाशन समूह से हिन्दी में प्रकाशित आपकी कृतियाँ हैं : ‘सुदूर झरने के जल में’, ‘छविगृह में अँधेरा है’, ‘रानू और भानु’, ‘स्नेह वर्षा’, ‘बीता काल’, ‘चित्रकला कविता के देशे’।

सम्मान : ‘आनन्द पुरस्कार’ दो बार प्राप्त। सन् 1983 में ֹ‘बंकिम पुरस्कार’। सन् 1985 में 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, सन् 2004 में ‘सरस्वती सम्मान’।

निधन : 23 अक्टूबर, 2012

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