Phir Kabhi Aana

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Phir Kabhi Aana
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ओड़िया के वरिष्ठ कवि सीताकान्त महापात्र का यह संग्रह मृत्यु के विरुद्ध जीवन की हठ और प्रकृति में निबद्ध जीवन की अलग-अलग सम्भावनाओं का आख्यान है। जीवन के मौन क्षणों को भाषा में अंकित करते हुए वे इन कविताओं में जिस तरह जिजीविषा की नि:शब्द बोली को स्वर देते हैं वह अद्भुत है। चाहे यमराज से दोस्ताना बातें करते हुए उन्हें फिर कभी आने के लिए कहना हो या पृथिवीवासी वृक्षविरोधी यमदूतों को सम्बोधित वृक्ष-संहिता की कविताओं में बिंधा वृक्षालाप, और संग्रह की अन्य कविताएँ, सीताकान्त जी मनुष्य और प्रकृति से बने समवेत लोक की उत्तरजीविता की कामना को मंत्र की तरह जपते हैं।

“कल नहीं रहूँगा मैं/कुआँ-कुआँ का स्वर सुनाई दे रहा होगा/नन्ही मुस्कान होगी उसकी/फूल होंगे, मधुमक्खियाँ होंगी/ईश्वर उस बच्चे की मुस्कान देख तब भी आशान्वित होंगे।”

मरण के ऊपर जीवन की सम्भावनाओं को धन की तरह संचित करती ये पंक्तियाँ एक बड़े कवि की ओर से अपने आगे आनेवाले समय को शुभ आमंत्रण की तरह प्रकट होती हैं। एक अन्य कविता में वे कहते हैं :

“कितनी ख़ुशी से/इन्तिज़ार करती है लॉन की घास/दो नन्हे पैरों को चूमने का/फूलों के गमले गिर जाने का/तरह-तरह के रंग पहचाने जाने के लिए/रंग-बिरंगी दवा की गोलियाँ/पन्नी की क़ैद से मुक्त हो बाहर आने को।”

लेकिन धरती के जीवन को किसी परालोक का उपहार वे नहीं मानते। मनुष्य की संघर्ष-शक्ति और अपनी दुनिया आप सिरजने, बचाने और बढ़ाने की उद्दाम इच्छा को वे दैवी शक्ति से स्वतंत्र एक सत्ता के रूप में रेखांकित करते हैं, और जिस तरह यम को वापस जाने के लिए कहते हैं उसी तरह देवताओं को भी सुना देते हैं कि हमारे उद्धार के लिए नहीं, आप अवतार लेकर आते हैं, तो अपनी किसी परेशानी के कारण आते होंगे।

“स्वर्ग की चकाचौंध से चौंधियाकर/दीर्घ तनु, दिव्य रूप देवता गण/उससे अधीर हो भाग आते हैं हमारे बीच/धरातल के अँधेरे में/...दो, उन्हें अपना साथी बनने दो।”

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2016
Edition Year 2016, Ed. 1st
Pages 132p
Translator Rajendra Prashad Mishra
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Sitakant Mahapatra

Author: Sitakant Mahapatra

सीताकान्त महापात्र

जन्म : सन् 1937, ओडिशा में। उत्कल, इलाहाबाद तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में शिक्षा।
1975-77 में होमी भाभा फ़ेलोशिप पाकर सामाजिक नेतृत्व विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि। 1961 से भारतीय प्रशासनिक सेवा से सम्बद्ध रहे। ओडिशा सरकार तथा केन्द्र सरकार में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे तो यूनेस्को में भी काम किया।
प्रमुख कृतियाँ : अब तक ओड़िया भाषा में सत्रह काव्य-संग्रह तथा आलोचनात्मक निबन्धों के छह संग्रह प्रकाशित। अधिकांश रचनाएँ अन्य भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, स्पेनिश, फ़्रेंच, जर्मन, रूसी, स्वीडिश आदि विदेशी भाषाओं में अनूदित व प्रकाशित।
राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मभूषण’ एवं ‘पद्मविभूषण’ से अलंकृत। 1993 के ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ के अलावा ‘कबीर सम्मान’, ‘केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘सारला पुरस्कार’, ‘कुमारन आशन पोयट्री पुरस्कार’, ‘ओडिशा साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘विषुव सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।


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