Facebook Pixel

Patiya-Hard Cover

Special Price ₹212.50 Regular Price ₹250.00
15% Off
In stock
SKU
9788126725236
- +
Share:
Codicon

‘पतिया’ यशस्वी कवि केदारनाथ अग्रवाल का उपन्यास है। अब तक अनुपलब्ध होने के कारण केदार-साहित्य के सहृदय पाठक और आलोचक इस उल्लेखनीय कृति से वंचित रहे। उनके लिए वस्तुत: ‘पतिया’ एक अनमोल उपहार है।

हिन्दी साहित्य में स्त्री-विमर्श की औपचारिक रूप से चर्चा प्रारम्भ होने से बहुत पहले रची गई कृति ‘पतिया’ में स्त्री-जीवन की जाने कितनी विडम्बनाएँ चित्रित हो चुकी थीं। परिवार, दाम्पत्य, यौन स्वातंत्र्य, शोषण और अलगाव आदि से जुड़े प्रसंगों के छायाचित्र ‘पतिया’ को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। उपन्यास की नायिका का जीवन-संघर्ष स्वयं बहुत कुछ कहता है। स्त्री समलैंगिकता की स्थितियाँ भी प्रस्तुत उपन्यास में हैं। इससे सिद्ध होता है कि कोई भी प्रवृत्ति या घटना सामाजिक स्थिति और व्यक्तिगत मन:स्थिति का संयुक्त परिणाम होती है।

इस उपन्यास का गद्य विशिष्ट है...एक कवि का गद्य। छोटे-छोटे वाक्य। बिम्ब, प्रतीक समृद्ध भाषा। संवेदनशील और प्रवाहपूर्ण। यथार्थवादी गद्य का उदाहरण। पतिया की ननद मोहिनी का यह चित्र कितना व्यंजक है, “मैली-सी चौड़े किनारे की धोती पहिने है। हाथ और पैरों में चाँदी के गहने खनक रहे हैं। धोती का पल्ला सिर से उतरकर गरदन पर आ गया है। पीछे से एक बड़ा-सा जूड़ा उठा दिखता है। जूड़ा गोल घेरे में बँधा है। सामने से देखने पर सिर में सिन्दूर भरी चौड़ी-सी माँग दिखती है। कानों में तरकियाँ, नाक में पीतल की फुल्ली और गले में रंगीन काँच और मूँगे के दानों से बनी दुलरी पड़ी है। बड़ी-बड़ी आँखों में काजल खिंचा है। दाहिनी ओर गाल पर एक तिल है। चेहरे पर तेल की चिकनाहट जवानी को चमका रही है। कोई कुरती या सलूका नहीं पहने है। बर्तन माँजते वक़्त, उसके दोनों उरोज, छलक पड़ते हैं। रंग ज़्यादा गोरा नहीं, पर साँवले से कुछ निखरा हुआ है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 112p
Price ₹250.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Patiya-Hard Cover
Your Rating
Kedarnath Agrawal

Author: Kedarnath Agrawal

केदारनाथ अग्रवाल

 

जन्म : 1 अप्रैल, 1911; जन्म-स्थान : कमासिन, बाँदा (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा : बी.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय; एल.एल.बी., डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर।

प्रकाशित-कृतियाँ : काव्य-संग्रह—‘युग की गंगा’ (1947), ‘नींद के बादल’ (1947), ‘लोक और आलोक’ (1957), ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ (1965), ‘आग का आईना’ (1970), ‘गुलमेंहदी’ (1978), ‘आधुनिक कवि—16’ (1978), ‘पंख और पतवार’ (1980), ‘हे मेरी तुम’ (1981), ‘मार प्यार की थापें’ (1981), ‘बम्बई का रक्त-स्नान’ (1981), ‘कहें केदार खरी-खरी’ (1983 : सम्पादक—अशोक त्रिपाठी), ‘जमुन जल तुम’ (1984 : सम्पादक—अशोक त्रिपाठी), ֹअपूर्वा’ (1984), ‘बोले बोल अबोल’ (1985), ‘जो शिलाएँ तोड़ते हैं’ (1986 : सम्पादक—अशोक त्रिपाठी), ’आत्म-गंध’ (1988), ‘अनहारी हरियाली’ (1990), ‘खुलीं आँखें खुले डैने’ (1993), ’पुष्प दीप’ (1994), ’वसन्त में प्रसन्न हुई पृथ्वी’ (1996 : सम्पादक—अशोक त्रिपाठी), ֹ‘कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह’ (1997 : सम्पादक—अशोक त्रिपाठी); अनुवाद—ֹदेश-देश की कविताएँ’ (1970); निबन्ध-संग्रह—‘समय-समय पर’ (1970), ‘विचार-बोध’ (1980), ‘विवेक-विवेचन’ (1981); उपन्यास—‘पतिया’ (1985); यात्रा-वृत्तान्त—‘बस्ती खिले गुलाबों की’ (रूस की यात्रा का वृत्तान्त : 1975); पत्र-साहित्य—‘मित्र-संवाद’ (1991 : सम्पादक—रामविलास शर्मा, अशोक त्रिपाठी)।

पुरस्कार : ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ (1973), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा दीर्घकालीन सेवाओं के लिए 1979-80 का ‘विशिष्ट पुरस्कार’, 'अपूर्वा’ पर 1986 का ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ म.प्र. साहित्य परिषद, भोपाल का ‘तुलसी सम्मान’ (1986), म.प्र. साहित्य परिषद, भोपाल का ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’ (1990)।

मानद उपाधियाँ : हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा 'साहित्य वाचस्पति’ उपाधि (1989), बुन्देलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी द्वारा डी.लिट्. उपाधि (1995)।

निधन : 22 जून, 2000

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top