हिन्दी आलोचना इस अर्थ में सदैव प्रयोगधर्मी और नवोन्मेषकारी रही है कि उसने पश्चिम में उभरे साहित्य-सिद्धान्तों को भरपूर उत्साह के साथ न सिर्फ़ ग्रहण किया, बल्कि उस पर अपने स्थानीय नज़रिए से चिन्तन-मनन भी किया। इस प्रक्रिया में एक तरफ़ भारतीय साहित्य आलोचना समृद्ध हुई तो साथ ही हमें रचना के सत्य तक पहुँचने के एकाधिक उपकरण भी उपलब्ध हुए।
विद्वान साहित्य-चिन्तक राजनाथ के निबन्धों का यह संकलन मुख्य रूप से बीसवीं सदी के पाश्चात्य समीक्षकों और समीक्षा-आन्दोलनों पर केन्द्रित है। इसमें उन सभी विचारकों के सिद्धान्तों पर विचार किया गया है जिनसे विश्व की आधुनिक समीक्षा का परिदृश्य आकार ग्रहण करता है। इस परिदृश्य में एक तरफ़ अगर टी.एस. इलियट और आई.ए. रिचड् र्स हैं जिन्होंने सदी की समीक्षाधारा को एक नई दिशा दी तो दूसरी ओर विखंडनवाद और उत्तर-औपनिवेशिक समीक्षा-पद्धतियाँ हैं, जो हाल के दशकों में सामने आईं और जिन्होंने विश्व-स्तर पर समीक्षा-विमर्श को व्यापक रूप में प्रभावित किया। साथ ही इसमें रूस, फ़्रांस और जर्मनी जैसे कुछ नए समीक्षा-केन्द्रों से शुरू हुई समीक्षा-प्रवृत्तियों की भी चर्चा की गई है। लेखक के अपने विश्वास और मान्यताएँ इस पुस्तक को एक मौलिक आयाम देते हैं।
मूल रूप से अंग्रेज़ी में लिखित और व्यापक रूप से चर्चित-प्रशंसित ये लेख साहित्य-चेता विद्वानों, शोधार्थियों और छात्रों के लिए समान रूप से उपयोगी हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2009 |
Edition Year | 2023, Ed. 2nd |
Pages | 239p |
Price | ₹795.00 |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2 |