जिस ज़माने में हमने पत्रकारिता शुरू की उसके पहले या उस दौर में भी पत्रकारिता के जो विषय होते थे, उनका अन्दाज़े-बयाँ साहित्यिक होता था। हमें बड़ी घुटन होती थी कि सच्चाई कहाँ है, देश कहाँ है और आप शब्दों में घूम रहे हैं, कविता में घूम रहे हैं और दुनिया कहाँ है? संतोष भारतीय, एस.पी. सिंह और उदयन शर्मा ने उस दौर में हिन्दी पत्रकारिता को उस साहित्यिक दरिया से निकाला और ‘रविवार’ के ज़रिए एक ऐसी जगह ले गए कि उसमें एक मैच्योरिटी जल्दी आ गई। उस ज़माने में हमने ज़मीन की पत्रकारिता की जिसका एक ख़ास रिवोल्यूशनरी प्रभाव हुआ और जिसका असर बहुत दूर तक गया। हमारा जो शुरुआती दौर था, वो समय विरोधाभासों का भी था। हमारी पत्रकारिता पर आपातकाल का जो प्रभाव पड़ा, उसकी भी बड़ी भूमिका थी क्योंकि हम भी एक लिबरेशन के साथ निकले थे। हम सब इतने पॉलिटिकल थे कि राजनीति में फँस गए, पर ख़ुशक़िस्मती है कि निकल भी गए। पत्रकारिता ने हमें दोस्त बनाया और राजनीति ने अलग किया। अब चूँकि हम वापस पत्रकारिता में आ गए हैं, इसलिए पुरानी दोस्ती का मौक़ा मिला है। हम लोग चार थे : मैं, एस.पी., संतोष और उदयन—जिनमें से दो अब हमारे बीच नहीं हैं। सचमुच लगता है कि अगर चारों रहते तो हिन्दी पत्रकारिता में उसका एक गहरा प्रभाव होता। आज मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि संतोष की पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।
—एम.जे. अकबर
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Isbn 10 | 8171199879 |
Publication Year | 2005 |
Edition Year | 2005, Ed. 1st |
Pages | 288p |
Price | ₹250.00 |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2.5 |