भारत से लेकर सम्पूर्ण विश्व के शक्तिहीन, दबे-कुचले, सामाजिक रूप से पिछड़े और सताए हुए
लोग और उनके समूह जब आपस में मिलकर शक्ति-सम्पन्न होने का संकल्प लें, तो इसे बड़े बदलाव के भावी संकेत
के रूप में लिया जाना चाहिए। इतिहास बनने की शुरुआत ऐसे ही होती है। जो इसकी अगुआई करते हैं, उन्हें
इतिहास अपने सिर-माथे बैठाता है, क्योंकि अगर वे आगे नहीं बढ़ते तो यात्रा अपने अन्तिम चरण पर पहुँचती ही
नहीं। दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण की यात्रा शुरू हो चुकी है। इस यात्रा का ध्येय है शक्तिहीन, दबे-कुचले, और
सामाजिक रूप से भेदभाव के शिकार दलितों और अल्पसंख्यकों को शक्ति-सम्पन्न करना व उनके सामाजिक आधार
को मज़बूत करते हुए उन्हें नेतृत्व के लिए तैयार करना।
पुस्तक का महत्त्वपूर्ण अंश है डॉ. मनमोहन सिंह का कथन। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने शक्तिहीनों
को शक्ति-सम्पन्न बनाने तथा दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के प्रयास को अपना पूरा समर्थन देने की घोषणा की।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने साफ़ कहा कि अब सहूलियत देने से काम नहीं चलेगा, वंचितों
को शिरकत भी देनी होगी। बाबा साहेब अम्बेडकर ने ग़रीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण की लड़ाई को
वैज्ञानिक विचार का आधार दिया तथा उसे हथियार बनाया। उसी कड़ी में यह एक प्रयास है ताकि आज दलित,
अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के लिए लड़नेवाले लोग न केवल अपना वैचारिक आधार मज़बूत कर सकें, बल्कि उसे
हथियार के रूप में भी इस्तेमाल कर सकें।
यह पुस्तक उन सबके लिए उपयोगी होगी जो ग़रीबों और वंचितों की लड़ाई में या तो शामिल होना चाहते हैं या
उन्हें सहयोग देना चाहते हैं। राजनीति और समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक भारत के परिवर्तन की इस
लड़ाई को समझने का आधार बनेगी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2008, Ed. 1st |
Pages | 448p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 24 X 16 X 3.5 |