Patrakarita : Naya Daur, Naye Pratiman

Edition: 2005, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Patrakarita : Naya Daur, Naye Pratiman

संतोष भारतीय ने महत्त्वपूर्ण पत्रकारिता की है। वे कुशल संवाददाता रहे हैं और ‘चौथी दुनिया’ से सम्पादन की निपुणता भी दिखा चुके हैं। मगर फ़ैज़ के भाव में ‘कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया’ की उधेड़बुन के चलते शायद वे कहीं ठहर-से गए। राजनीति की तरफ़ वे ज़्यादा न झुकते तो और सार्थक काम करते। बहरहाल, उनकी किताब ‘पत्रकारिता : नया दौर, नए प्रतिमान’ सिरे से पढ़ने के क़ाबिल है। इसमें उनके ‘रविवार’ और ‘चौथी दुनिया’ के दिनों के संस्मरण हैं, अपने रपट-रिपोर्ताज हैं और साथ में सम्पादक-उपसम्पादक और संवाददाता आदि की ज़िम्मेवारियों का विवेचन है। इस तरह एक मायने में किताब पत्रकारिता की पाठ्य-पुस्तक बन गई है। साफ़गोई और बेबाक टिप्पणियों के लिए यह किताब अलग से जानी जाएगी। हालाँकि उनके कुछ निष्कर्ष भावुकता-भरे हैं, कुछ से आप शायद सहमत न हों। पर वे बहुत दिलचस्प हैं और हमें हिन्दी पत्रकारिता के एक अहम दौर की घटनाओं पर फिर से सोचने को उकसाते हैं।

—ओम थानवी

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2005
Edition Year 2005, Ed. 1st
Pages 311p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Santosh Bhartiya

Author: Santosh Bhartiya

संतोष भारतीय

प्रसिद्ध पत्रकार और वरिष्ठ सम्पादक एम.जे. अकबर ने संतोष भारतीय की पत्रकारिता में अद्वितीय क्षमता को जाँचते हुए कहा था कि—“जिस ज़माने में हमने पत्रकारिता शुरू की, उसके पहले या उस दौर में भी पत्रकारिता के जो विषय होते थे, उनका अन्दाज़े-बयाँ साहित्यिक होता था। हमें बड़ी घुटन होती थी कि सच्चाई कहाँ है, देश कहाँ है और आप शब्दों में घूम रहे हैं, कविता में घूम रहे हैं और दुनिया कहाँ है? संतोष भारतीय, एस.पी. सिंह और उदयन शर्मा ने उस दौर में हिन्दी पत्रकारिता को उस साहित्यिक दरिया से निकाला और ‘रविवार’ के ज़रिए एक ऐसी जगह ले गए कि उसमें एक मैच्योरिटी जल्दी आ गई। उस ज़माने में हमने ज़मीन की पत्रकारिता की, जिसका एक ख़ास रिवोल्यूशनरी प्रभाव हुआ और जिसका असर बहुत दूर तक गया। हमारा जो शुरुआती दौर था, वो समय विरोधाभासों का भी था। हमारी पत्रकारिता पर आपातकाल का जो प्रभाव पड़ा, उसकी भी बड़ी भूमिका थी क्योंकि हम भी एक लिबरेशन के साथ निकले थे।”

संतोष भारतीय ने ‘रविवार’ से पत्रकारिता की शुरुआत की और वहाँ विशेष संवाददाता रहे। फिर कलकत्ता से प्रकाशित अंग्रेज़ी दैनिक ‘द टेलीग्राफ़’ में विशेष संवाददाता के तौर पर कार्य किया। इसके बाद टेलीविज़न के पहले न्यूज़ एंड करेंट अफ़ेयर्स कार्यक्रम ‘न्यूज़ लाइन’ में बतौर विशेष संवाददाता रहे। हिन्दी के पहले साप्ताहिक अख़बार ‘चौथी दुनिया’ के सम्पादक बने। 1989 में नौवीं लोकसभा के सदस्य चुने जाने के बाद ‘चौथी दुनिया’ के ही सलाहकार सम्पादक। समाचार एजेंसी ‘हेड लाइन प्लस’ के प्रधान सम्पादक रहे। प्रस्तावित टीवी चैनल ‘अलहिन्द’ और ‘फ़लक’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद जैन टेलीविज़न के सलाहकार रहे। फ़िलहाल स्वतंत्र टेलीविज़न पत्रकारिता के साथ-साथ राजनीति व पत्रकारिता पर कुछ पुस्तकों की तैयारी।

प्रमुख कृतियाँ : ‘निशाने पर : समय, समाज और राजनीति’, ‘पत्रकारिता : नया दौर, नए प्रतिमान’, ‘चुनाव रिपोर्टिंग और मीडिया’, ‘इतिहास पुरुष बनेंगे या अँधेरे में खो जाएँगे’, ‘चन्द्रशेखर, वी.पी. सिंह, सोनिया गांधी और मैं’।

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