Nind Thi Aur Raat Thi

Author: Savita Singh
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Nind Thi Aur Raat Thi
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‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में एक स्तर पर जहाँ सविता सिंह के उन सरोकारों और विश्व-दृष्टि की निरन्तरता है जिनके कारण पिछले संग्रह ‘अपने जैसा जीवन’ को विपुल सराहना मिली, तो अन्य स्तरों पर उस अनूठे और स्वाभाविक विकास की अद्भुत छवियाँ भी हैं जिसकी जड़ें हमारे संश्लिष्ट यथार्थ में बसती हैं। पिछली सदी के नवें दशक में काव्य-सक्रियता की शुरुआत करनेवाली सविता सिंह की रचनाओं ने स्त्री-विमर्श के गहरे आशयों से संयुक्त सांस्कृतिक बोध के लिए हमारी भाषा में नई जगह बनाई है और हिन्दी कविता के समकालीन सौन्दर्यशास्त्र को सम्भावना के नए इलाक़े में पहुँचाया है, यह कहना अतिकथन नहीं लगता क्योंकि न्याय, शक्ति और क्षमता के लिए संघर्ष करनेवाली नई स्त्री के अनुभवों, स्वप्नों और सामर्थ्य से पूर्ण होती ये कविताएँ न सिर्फ़ नई उम्मीदों की तरफ़ जाती हैं, बल्कि एक प्रकार की सामाजिक-सांस्कृतिक क्षतिपूर्ति का भरोसा भी दिलाती हैं।

‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में आकुल यथार्थ और स्वप्नमयता का द्वन्द्व है जिसकी गतिमानता हमारे समय के मानवीय मूल्यों वाले यथार्थ को विकृत करनेवाली या कि उसके रूपों को धुँधला करनेवाली ताक़तों के ख़िलाफ़ बड़ी सावधानी से अपना काम करती है। ये कविताएँ काफ़ी कुछ तोड़ती हैं, लेकिन तोड़ने के पश्चात् या कई बार ज़रूरत होने पर उसके साथ-साथ ही, रचती भी चलती हैं। इस दुहरी ज़िम्मेदारी वाली सक्रियता के ज़रिए सविता सिंह की कविताएँ हिन्दी जाति के सामूहिक मन का, उस मन के मर्म का, पुनर्संस्कार करती हैं—आत्मविश्वास से दीप्त विनम्रता के साथ, जिसमें दृष्टि की सफ़ाई और उद्देश्य की दृढ़ता प्रभुतावादी सत्ताओं के वर्चस्व को ही नहीं, कई बार उनके छल-भरे उदार-भाव को भी नेस्तनाबूद करने पर आमादा दीखती हैं।

‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में पीड़ा और अवसाद का भाव भी दम तोड़ता आख़िरी अहसास नहीं है, बल्कि अपने आवेग-संवेग से हमें आत्मा के उस सूने में ले जाता है जहाँ शायद हम कभी गए न थे और सच के वे बिम्ब पाए न थे जो अचानक ख़ुद को वहाँ प्रकट करने लगते हैं। इन कविताओं में प्रकृति, समय के स्त्रीकरण और ऐसी ही अन्य प्रविधियों के माध्यम से अपने ‘आत्मचेतस आत्मन्’ के आविष्कार की कोशिश है।

‘नींद थी और रात थी’ की कविताओं में स्त्री-विमर्श की तर्कशीलता का काव्यात्मक आभ्यन्तर, स्त्री-अस्मिता की पीड़ा, उदग्र ऐन्द्रीयता, सान्द्रता और संघर्ष सहजता की जिस ज़मीन पर उजागर हुए हैं, वह सचमुच नई खोज और आश्वस्ति की ज़मीन है।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2005
Edition Year 2019, Ed. 2nd
Pages 143p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.2 X 14.2 X 1.3
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Savita Singh

Author: Savita Singh

सविता सिंह

सविता सिंह का जन्म 05 फरवरी, 1962 को आरा (बिहार) में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्‍त्र में पी-एच.डी. किया। मांट्रियाल (कनाडा) स्थित मैक्गिल विश्वविद्यालय में साढ़े चार वर्ष  शोध व अध्यापन किया।

‘अपने जैसा जीवन’, ‘नींद थी और रात थी’, ‘स्वप्न समय’ के बाद 2021 में चौथे काव्य-संग्रह ‘खोई चीज़ों का शोक’ का प्रकाशन। ‘रोविंग टुगेदर’ (अंग्रेज़ी-हिन्दी) तथा ‘ज़ स्वी ला मेजों दे जेत्वाल’ (फ्रेंच-हिन्दी) शीर्षक से द्विभाषिक काव्य-संग्रह प्रकाशित। अंग्रेज़ी में कवयित्रियों के अन्तर्राष्ट्रीय चयन ‘सेवेन लीव्स, वन ऑटम’ का सम्पादन जिसमें प्रतिनिधि कविताएँ शामिल। ‘पचास कविताएँ : नई सदी के लिए चयन शृंखला’ के तहत चुनिंदा कविताएँ प्रकाशित। ‘ल फाउंडेशन मेजों देस साइंसेज़ ल दे' होम, पेरिस की पोस्ट-डॉक्टोरल फ़ेलोशिप के तहत कृष्णा सोबती के ‘मित्रो मरजानी’ तथा ‘ऐ लड़की’ उपन्यासों पर काम। राजनीतिक दर्शन के क्षेत्र में ‘रियलिटी एंड इट्स डेप्थ : ए कन्वर्सेशन बिटवीन सविता सिंह एंड भास्कर रॉय’ प्रकाशित।

विभिन्न भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में कविताएँ अनूदित। ओड़िया में दो काव्य-संग्रहों के अनुवाद प्रकाशित। हिन्दी अकादमी और रज़ा फ़ाउंडेशन के अलावा महादेवी वर्मा पुरस्कार (2016) तथा युनिस डि सूजा अवार्ड (2020) से सम्मानित।

सम्प्रति इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) में प्रोफ़ेसर, स्कूल ऑव ज़ेंडर एंड डेवलपमेंट स्टडीज़ की संस्थापक निदेशक। इंटरनेशनल हर्बर्ट मारक्यूस सोसायटी, अमेरिका के निदेशक मंडल की सदस्य।

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