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Nihshabd Noopur : Rumi Ki 100 Gazalein-Hard Cover

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9789388183253
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रूमी ईरान के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी ग़ज़लें ऊर्जस्वी काव्य के दुर्लभ उदाहरणों में से हैं। रूमी की ग़ज़लें सामान्य कविताओं की तुलना में अलग हैं। इनकी प्रत्येक ग़ज़ल का हर शे’र आत्म-अनुभूति की परिपूर्णता से उच्छलित है। इनकी कविता केवल काव्यात्मक चमत्कारों को प्रदर्शित कर पाठकों को लुब्ध करने में पर्यवसित नहीं होती, बल्कि दिल से निकलकर मस्तिष्क और हृदय को भिगोती हुई आत्मा तक का स्पर्श कर लेती है। प्रस्तुत पुस्तक उनकी चुनिन्दा 100 ग़ज़लों का अनुवाद है। इस पुस्तक के माध्यम से रूमी पहली बार सीधे फ़ारसी से हिन्दी में अनूदित हुए हैं। इसमें सबसे पहले फ़ारसी ग़ज़लों का देवनागरी में लिप्यन्तरण प्रस्तुत किया गया है, फिर साथ में ही उनका हिन्दी अनुवाद दिया गया है। अन्त में मूल ग़ज़लें फ़ारसी लिपि में भी रखी गई हैं। पुस्तक के अन्त में दिए गए अनेक परिशिष्टों के माध्यम से फ़ारसी काव्य-भाषा को समझने के महत्त्वपूर्ण उपकरण जुटाए गए हैं। ग़ज़लों में प्रयुक्त सभी छन्दों को ईरानी तथा भारतीय काव्यशास्त्रीय रीति से समझाया गया है। क्लासिकल फ़ारसी कविता के सम्यक् परिचय के लिए आवश्यक संक्षिप्त फ़ारसी व्याकरण जोड़ा गया है। अन्त में प्रत्येक शब्द का अर्थ भी दिया गया है। इस प्रकार मूल से जुड़े रसपूर्ण अनुवाद की प्रस्तुति के साथ ही यह पुस्तक रूमी-रीडर के तौर पर भी उपयोग में आने योग्य है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2018
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 432p
Price ₹1,295.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3.5
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Rumi

Author: Rumi

रूमी

30 सितम्‍बर, 1907 को फ़ारस देश के प्रसिद्ध नगर बल्‍ख़ में जन्‍मे मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी  फ़ारसी साहित्य के कालजयी रचनाकारों में से एक हैं। रूमी के पिता शेख़ बहाउद्दीन अपने समय के अद्वितीय विद्वान् थे। रूमी अपने पिता के जीवनकाल से उनके क़ाबिल शिष्य सैयद बरहानउद्दीन से पढ़ा करते थे। पिता की मृत्यु के बाद वह दमिश्क और हलब के विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए चले गए और लगभग 15 वर्ष बाद वापस लौटे। उस समय उनकी उम्र चालीस वर्ष थी, लेकिन रूमी की विद्वत्ता और सदाचार की इतनी प्रसिद्ध हो गई थी कि देश-देशान्तरों से लोग उनके दर्शन करने और उपदेश सुनने आया करते थे। रूमी भी रात-दिन लोगों को सन्मार्ग दिखाने और उपदेश देने में लगे रहते। इसी अर्से में उनकी भेंट विख्यात साधू शम्स तबरेज़ से हुई जिन्होंने रूमी को अध्यात्म-विद्या की शिक्षा दी और उसके गुप्त रहस्य बतलाए। रूमी पर उनकी शिक्षाओं का ऐसा प्रभाव पड़ा कि रात-दिन आत्म-चिन्तन और साधना में संलग्न रहने लगे। उन्‍होंने उपदेश, फ़तवे और पढ़ने-पढ़ाने का सब काम बन्द कर दिया। जब उनके भक्तों और शिष्यों ने यह हालत देखी तो उन्हें सन्देह हुआ कि शम्स तबरेज़ ने रूमी पर जादू कर दिया है। इसलिए वे शम्स तबरेज़ के विरुद्ध हो गए और उनकी हत्‍या कर दी। इस दुष्कृत्य में रूमी के छोटे बेटे इलाउद्दीन मुहम्मद का भी हाथ था। इस हत्या से सारे देश में शोक छा गया और हत्यारों के प्रति रोष और घृणा प्रकट की गई। रूमी को इस दुर्घटना से ऐसा दु:ख हुआ कि वे संसार से विरक्त हो गए और एकान्तवास करने लगे। इसी समय उन्होंने अपने प्रिय शिष्य मौलाना हसामउद्दीन चिश्ती के आग्रह पर 'मसनवी' की रचना शुरू की। कुछ दिन बाद वह बीमार हो गए और फिर स्वस्थ नहीं हो सके। 17 दिसम्‍बर, 1273  में उनका निधन हो गया। उस समय वे 68 वर्ष के थे। उनका मज़ार क़ौनिया में बना हुआ है।

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