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Rumi

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रूमी

30 सितम्‍बर, 1907 को फ़ारस देश के प्रसिद्ध नगर बल्‍ख़ में जन्‍मे मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन रूमी  फ़ारसी साहित्य के कालजयी रचनाकारों में से एक हैं। रूमी के पिता शेख़ बहाउद्दीन अपने समय के अद्वितीय विद्वान् थे। रूमी अपने पिता के जीवनकाल से उनके क़ाबिल शिष्य सैयद बरहानउद्दीन से पढ़ा करते थे। पिता की मृत्यु के बाद वह दमिश्क और हलब के विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए चले गए और लगभग 15 वर्ष बाद वापस लौटे। उस समय उनकी उम्र चालीस वर्ष थी, लेकिन रूमी की विद्वत्ता और सदाचार की इतनी प्रसिद्ध हो गई थी कि देश-देशान्तरों से लोग उनके दर्शन करने और उपदेश सुनने आया करते थे। रूमी भी रात-दिन लोगों को सन्मार्ग दिखाने और उपदेश देने में लगे रहते। इसी अर्से में उनकी भेंट विख्यात साधू शम्स तबरेज़ से हुई जिन्होंने रूमी को अध्यात्म-विद्या की शिक्षा दी और उसके गुप्त रहस्य बतलाए। रूमी पर उनकी शिक्षाओं का ऐसा प्रभाव पड़ा कि रात-दिन आत्म-चिन्तन और साधना में संलग्न रहने लगे। उन्‍होंने उपदेश, फ़तवे और पढ़ने-पढ़ाने का सब काम बन्द कर दिया। जब उनके भक्तों और शिष्यों ने यह हालत देखी तो उन्हें सन्देह हुआ कि शम्स तबरेज़ ने रूमी पर जादू कर दिया है। इसलिए वे शम्स तबरेज़ के विरुद्ध हो गए और उनकी हत्‍या कर दी। इस दुष्कृत्य में रूमी के छोटे बेटे इलाउद्दीन मुहम्मद का भी हाथ था। इस हत्या से सारे देश में शोक छा गया और हत्यारों के प्रति रोष और घृणा प्रकट की गई। रूमी को इस दुर्घटना से ऐसा दु:ख हुआ कि वे संसार से विरक्त हो गए और एकान्तवास करने लगे। इसी समय उन्होंने अपने प्रिय शिष्य मौलाना हसामउद्दीन चिश्ती के आग्रह पर 'मसनवी' की रचना शुरू की। कुछ दिन बाद वह बीमार हो गए और फिर स्वस्थ नहीं हो सके। 17 दिसम्‍बर, 1273  में उनका निधन हो गया। उस समय वे 68 वर्ष के थे। उनका मज़ार क़ौनिया में बना हुआ है।

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