Facebook Pixel

Narak Gulzar-Hard Cover

Special Price ₹68.00 Regular Price ₹80.00
15% Off
Out of stock
SKU
9788171193097
Share:
Codicon

मानवीय गरिमा और सामाजिक मूल्यों की स्थापना के लिए निरन्तर युद्धरत बाडाला के अप्रतिम एवं शीर्षस्थ रचनाकार सुभाष मुखोपाध्याय का मार्मिक उपन्यास है—‘नरक गुलज़ार’।

किसी प्रतिष्ठित उपक्रम का एक वरिष्ठ अधिकारी अचानक कुष्ठ रोग का शिकार हो जाए और फिर अपने सामाजिक जीवन और गिरस्ती को तिलांजलि देकर कोढ़ियों की एक उपनगरीय बस्ती में आकर अपना जीवन गुज़ारने लगे तो किसे यह विश्वास होगा कि वह इस बस्ती का सर्वप्रिय चाचा 'पैन साहब' हो जाएगा! चोरी-चकारी, देसी दारू बनानेवालों और भीख माँगनेवालों की यह बस्ती धीरे-धीरे उसे इतनी प्रिय लगने लगती है कि वह अपने अतीत को भूलकर अपने सामने चुनौती देते वर्तमान को अपना सबकुछ सौंप देता है और सारी बस्ती के सुख-दु:ख उसके अपने-से लगने लगते हैं। कोढ़ से गल गए शरीरों और इसके साथ भूमिसात सपनों की यह अपरिचित दुनिया बाहर से बड़ी ख़ौफ़नाक लगती है, लेकिन कोढ़ियों का अपना संसार कितना रोचक और संवेदनशील होकर धीरे-धीरे सुभाष दा जैसे कवि का रचनात्मक संसार बन जाता है!

नक्सल आन्दोलन से जुड़े कथानकों ने साठ-सत्तर के दशकों में बांग्ला साहित्य में कभी धूम-सी मचा दी थी और आलोचकों ने इसे लेखकों का ‘नक्सलमेनिया’ भी कहा था। राजनीतिक पृष्ठभूमि में कोढ़ियों की बस्ती में युवा नक्सलों के आगमन, पुलिस का दमन-चक्र, व्यवस्था की बर्बरता और फ़र्ज़ी मुठभेड़ में उनका सफ़ाया, एक बुज़ुर्ग कोढ़िन चामुरिया के प्रेम और फिर उसके माँ बनते-बनते गुज़र जाने और इसी बस्ती की सोनी के अनब्याहे मातृत्व जैसी मार्मिक घटनाएँ इस लघु उपन्यास को बेहद जीवन्त बना देती हैं। इस उपन्यास का ताना-बाना कुछ इस तरह बुना गया है कि पाठक को यह पता ही नहीं चलता कि इसने उसे कब अपनी गिरफ़्त में ले लिया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Dr. Ranjeet Saha
Editor Not Selected
Isbn 10 8171193099
Edition Year 1997
Pages 124p
Price ₹80.00
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Narak Gulzar-Hard Cover
Your Rating
Subhash Mukhopadhyay

Author: Subhash Mukhopadhyay

सुभाष मुखोपाध्याय

जन्म : 19 फरवरी, 1919 को नदिया, ज़िला—कृष्णनगर, पश्चिम बंगाल में हुआ। अपने अनुभव की ऊर्जा और जिजीविषा को एक समर्थ रचना-शिल्पी की तरह सर्वथा नए रूपाकार में गढ़नेवाले सुभाष मुखोपाध्याय वर्ष 1941 में विश्वविद्यालय स्नातक हो जाने के बाद कम्युनिष्ट पार्टी के कार्यकर्ता और एंटीफासिस्ट राइटर्स एंड आर्टिस्ट एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए। विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों का कार्य किया और कारा-यातना भी भुगती। ‘पदातिक’ (1940) कविता-संकलन ने उनके कवि-रूप को उजागर किया और इसके बाद ‘दृष्टिकोण’ (1948), ‘चिरकुट’ (1950), ‘फूल फुटुक (1961), ‘काल मधुमास’ (1969), ‘एई भाई’ (1971), ‘एकटु पा चालिए, भाई’ (1989), ‘धर्मेर कल’ (1989), ‘जा रे कागजेर नौको’ (1991), ‘एक बार बिदाय दे मा’ (1995) तक की उनकी लम्बी रचना-यात्रा में उनके असंख्य पाठक और प्रशंसक सम्मिलित रहे हैं।

कवि सुभाष की कविता केवल बाङ्ला या भारतीय भाषाओं के मंच पर ही सम्मानित नहीं, विश्व-मंच पर प्रतिष्ठित है। ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘आनन्द पुरस्कार’, ‘एफ्रो-एशियन लोटस पुरस्कार’, ‘कबीर सम्मान’, ‘पद्म भूषण’ आदि से सम्मानित। सुभाष मुखोपाध्याय ने यात्रा-वृत्तान्त, आत्मजीवनी, ‘ढोल-गोविन्देर आत्मदर्शन’ और किशोर साहित्य के साथ विपुल अनुवाद-कार्य भी किया है।

निधन : 8 जुलाई, 2003

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top