गुरू का पैसार बहुत बड़ा है। वाणी में अद्भुत शक्ति है। अफ़वाहों का अतुल भंडार है गुरू के पास। कनफूँकों की कमी नहीं है। अगर गुरू को पता चल गया बेटा, कि तुम फरजी बनने के फेर में गुरू से ही ऐंड़ ले रहे
हो तो समझ लो, ऐसी लँगड़ी लगेगी कि हमेशा के
लिए गुड़ुम्।
कहीं कोई है, कोई है जिसका पता नहीं। जिसका तुम्हें कभी पता नहीं चलेगा। चौबीसों घंटे पहरा देते रहो–तब भी नहीं। वह दिन और रात के समय के बाहर के समय में कहीं स्थित है। वहाँ तुम नहीं पहुँच सकते। वहाँ के दोनों निश्चिन्त-निरावृत्त विहार करते हैं। और तुम पर हँसते हैं। वह हँसी तुम्हें कभी सुनाई नहीं देगी। खोजते रहो जीवन-भर–उस अलक्ष्य-निराकार के पीछे पड़े रहो। ठेंगा दिखाता हुआ वह तुम्हारे सामने से गुज़र जाएगा और तुम्हारा जीवन इसी में चुक जाएगा।
गड़बड़ है। बहुत गड़बड़ है। कुछ भी हो सकता है। तुम पर कोई भी इल्ज़ाम आ सकता है। किसी पर भी। नहीं, संग-साथ ठीक नहीं। दरअसल, दुनिया एक हिलता हुआ पर्दा है। तुम देख सकते हो कि मुर्दे की बग़ल में कोई संभोग-रत है। या तुम यही कहोगे कि पर्दा हिल रहा है। अनरीयल, अनरीयल–तुम चिल्लाओगे।
जैसे नक़्क़ाशीदार सोने के गहने पिघलाने के बाद एकसार हो जाते हैं। सिर्फ़ स्वर्ण-द्रव बच रहता है–अपनी सुनहली आभा में झिलमिल-झिलमिल करता हुआ, वही हाल प्रेम में लड़की का होता है। और शैव्या भी वही रह गई–अपनी नक़्क़ाशी के पास एक झिलमिल-सी आभा। कुछ भी जुड़ा नहीं उसमें, बल्कि प्रेम ने उसे विनष्ट कर दिया। पहले वह क्या थी और अब क्या है! छुएँ तो बचपन हाथ नहीं लगेगा। एक बार नक़्क़ाशी खंड-खंड हुई तो फिर वापस नहीं आने की।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1998 |
Edition Year | 2022, Ed. 5th |
Pages | 116P |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1 |