-लेखन में बीसवीं सदी से आज तक का समय यदि एक प्रस्थान-बिन्दु के रूप में लिया जाए तो यह स्पष्ट है कि इन सौ वर्षों में स्त्रियों की लेखनी में सबसे अधिक परिवर्तन की प्रक्रिया दिखी। पुरुष-लेखन में मात्र एक पात्र होने की भूमिका से निकलकर स्त्री-लेखक ने स्वयं अपनी क़लम से अस्तित्व, व्यक्तित्व और विचार को अभिव्यक्ति देना अभीष्ट समझा।
प्रस्तुत संकलन में स्त्री-रचनाकारों के कोमल संवेगों के साथ-साथ आत्मसजग सृजन और विकास-प्रक्रिया का परिचय मिलता है। राजेन्द्र बाला घोष (बंग महिला) से लेकर अलका सरावगी तक एक लम्बी परम्परा तैयार हुई है जहाँ क़लम की साँकलें कहीं अनायास तो कहीं सायास खुली हैं। हर्ष और गर्व का विषय है कि महिला-लेखन अब हिन्दी साहित्य में एक सशक्त सचेत और संवेदनायुक्त धारा है। आनेवाला समय यह याद रखे कि अपने इर्द-गिर्द खड़े किए समस्त चौखटे और कोष्ठक तोड़कर इक्कीसवीं सदी की स्त्री अपने पूरे तेवर के साथ हर क्षेत्र में उठ खड़ी हुई है। प्रस्तुत संकलन में हमें कहानी और निबन्ध, जीवनी और संस्मरण, आलोचना और विमर्श, गोया हर विधा और विषय पर स्त्री की तेजस्विता का परिचय मिलेगा। महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी से लेकर गीतांजलि श्री, मधु कांकरिया, सारा राय और अलका सरावगी तक अपने पूरे तेवर के साथ यहाँ मौजूद हैं। पृष्ठ सीमा के चलते कई विधाओं का मात्र उल्लेख ही कर पाये हैं। यहीं से अगले खंड की सम्भावना नज़र आती है।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2020 |
Edition Year | 2020, Ed. 1st |
Pages | 486p |
Price | ₹499.00 |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 15 X 3 |