एक टुटही सायकल है, उसके टैक्स का टोकन मैंने सायकल में ही कसवा दिया है। अब सरकार मुझसे क्या चाहती है? हुज़ूर आप ही बताइए, जो शख़्स बिना हुज्जत के सरकार का पूरा टैक्स अदा कर देता है, जिसकी किसी से कोई अदावत नहीं, जो सिर्फ़ अपने काम से काम रखता है और गर्दन नीची किए हुए उसी अल्लाह मियाँ को याद करके चुपचाप चलता रहता है, वह क्यों इतना परेशाँ है? जिधर निकलता हूँ, यही आवाज़ें आने लगती हैं—मारो! मारो! क्यों मरोगे भाई? मैंने क्या गुनाह किया है, किस जुर्म की सज़ा देना चाहते हो। इस घर से आवाज़ आ रही है, उस घर से भी यही आवाज़ आ रही है। बाज वक़्त कान लगाकर सुनता हूँ तो यक़ीन हो जाता है कि किसी इनसान की ही आवाज़ है। आप तो पढ़े-लिखे आदमी हैं हुज़ूर, क्या मुझे बता सकते हैं कि हुकूमत क्यों ख़ामोश है? लगता है, आप हुकूमत की बात से ऊब रहे हैं।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1986 |
Edition Year | 2007 |
Pages | 103p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 17 X 11.5 X 0.5 |