Jugalbandi

Author: Giriraj Kishore
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Jugalbandi
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‘जुगलबन्दी’ उन द्वन्द्वात्मक स्थितियों की अभिव्यक्ति है जिनमें आज़ादी के तेवर हैं तो ग़ुलामी की मानसिकता भी। दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर आज़ादी मिलने तक का समय जुगलबन्दी में सिमटा हुआ है। यह समय अजीब था...इसे न तो ग़ुलामी कहा जा सकता है और न आज़ादी। इसी गाथा की महाकाव्यात्मक परिणति है ‘जुगलबन्दी’।

इस उपन्यास में यह तथ्य उभरकर आया है कि रचनात्मक रूप में जो लोग क्रान्ति से जुड़े थे वे कुंठा-मुक्त नहीं थे और जिन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान उस व्यवस्था में अपना स्थान बना लिया था वे भी स्वयं को कुंठाग्रस्त पा रहे थे। ‘जुगलबन्दी’ में लेखक ने इसका हृदयस्पर्शी चित्रण करते हुए बहुत सजगता के साथ रेखांकित किया है कि इस द्वन्द्वात्मक स्थिति में एक तीसरी जमात भी थी जो न तो क्रान्ति में शामिल थी और न शासन में उसका कोई स्थान था। वह उस पूरे संघर्ष के दबाव को अपने शरीर और आँतों पर झेल रही थी।

टूटने और बनने की इस प्रक्रिया को ‘जुगलबन्दी’ में व्यापक कैनवस मिला है जिस पर उस पूरे युग का प्रतिबिम्बन है—आज की भाषा और आज के मुहावरों के साथ, मुग्धकारी और हृदयस्पर्शी।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1973
Edition Year 2015, Ed. 6th
Pages 360p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 2
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Giriraj Kishore

Author: Giriraj Kishore

गिरिराज किशोर

जन्म : 1937, मुज़फ़्फ़रनगर (उ.प्र.)। शिक्षा : एम.एस.डब्ल्यू.। 1995 में दक्षिण अफ्रीका एवं मॉरीशस की यात्रा। प्रकाशित कृतियाँ : ‘बा’, ‘लोग’, ‘चिड़ियाघर’, ‘जुगलबन्दी’, ‘दो’, ‘तीसरी सत्ता’, ‘दावेदार’, ‘यथा-प्रस्तावित’, ‘इन्द्र सुनें’, ‘अन्तर्ध्वंस’, ‘परिशिष्ट’, ‘यात्राएँ’, ‘ढाईघर’, ‘गिरमिटिया’ (उपन्यास); ‘नीम के फूल’, ‘चार मोती बेआब’, ‘पेपरवेट’, ‘रिश्ता और अन्य कहानियाँ’, ‘शहर-दर-शहर’, ‘हम प्यार कर लें’, ‘गाना बड़े गुलाम अली खाँ का’, ‘जगत्तारणी’, ‘वल्दरोजी’, ‘आन्द्रे की प्रेमिका और अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘नरमेध’, ‘घास और घोड़ा’, ‘प्रजा ही रहने दो’, ‘जुर्म आयद’, ‘चेहरे-चेहरे किसके चेहरे’, ‘केवल मेरा नाम लो’, ‘काठ की तोप’ (नाटक); ‘ग़ुलाम-बेगम-बादशाह’ (एकांकी-संग्रह); ‘कथ-अकथ’, ‘लिखने का तर्क’, ‘संवाद सेतु’, ‘सरोकार’ (निबन्‍ध-संग्रह)। सम्मान : हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश का नाटक पर 'भारतेन्दु पुरस्कार’; मध्य प्रदेश साहित्य परिषद का ‘परिशिष्ट’ उपन्यास पर 'वीरसिंह देव पुरस्कार’; उत्तर प्रदेश हिन्दी सम्मेलन द्वारा 'वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक’; 1992 का 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार’; 'ढाईघर’ के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'साहित्य भूषण सम्मान’; ‘महात्मा गांधी सम्मान’, हिन्दी संस्थान, उत्तर प्रदेश; 'व्यास सम्मान’, के.के. बिड़ला न्यास, नई दिल्ली; 'जनवाणी सम्मान’, हिन्दी सेवा न्यास, इटावा। निधन : 9 फरवरी, 2020

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