Aanjaney Jayte

Fiction : Novel
Author: Giriraj Kishore
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Aanjaney Jayte
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‘आंजनेय जयते’ गिरिराज किशोर का सम्भवत: पहला मिथकीय उपन्यास है। इसकी कथा संकटमोचन हनुमान के जीवन-संघर्ष पर केन्द्रित है। रामकथा में हनुमान की उपस्थिति विलक्षण है। वे वनवासी हैं, वानरवंशी हैं, लेकिन वानर नहीं हैं; बल्कि अपने समय के अद्भुत विद्वान, शास्त्र-ज्ञाता, विलक्षण राजनीतिज्ञ और अतुलित बल के धनी हैं। उन्होंने अपने समय के सभी बड़े विद्वान ऋषि-मुनियों से ज्ञान हासिल किया है। उन्हें अनेक अलौकिक शक्तियाँ हासिल हैं।

तमाम साहित्यिक-सांस्कृतिक स्रोतों के माध्यम से गिरिराज किशोर ने हनुमान को वानरवंशी आदिवासी मानव के रूप में चित्रित किया है, जो अपनी योग्यता के कारण वानर राजा बाली के मंत्री बनते हैं। बाली और सुग्रीव के बीच विग्रह के बाद नीतिगत कारणों से वे सुग्रीव की निर्वासित सरकार के मंत्री बन जाते हैं।

इसी बीच रावण द्वारा सीता के अपहरण के बाद राम उन्हें खोजते हुए हनुमान से मिलते हैं। हनुमान सीता की खोज में लंका जाते हैं। सीता से तो मिलते ही हैं, रावण की शक्ति और कमज़ोरियों से भी परिचित होते हैं। फिर राम-रावण युद्ध, सीता को वनवास, लव-कुश का जन्म और पूरे उत्तर कांड की कहानी वही हैबस, दृष्टि अलग है।

लेखक ने पूरी रामकथा में हनुमान की निष्ठा, समर्पण, मित्रता और भक्तिभाव का विलक्षण चित्र खींचा है। उनकी अलौकिकता को भी महज़ कपोल-कल्पना न मानकर एक आधार दिया है। लेखक ने पूरे उपन्यास में उन्हें अंजनी-पुत्र आंजनेय ही कहा है, उनकी मातृभक्ति के कारण उपन्यास में सबसे महत्त्वपूर्ण उत्तरार्ध और क्षेपक है जो शायद किसी राम या हनुमान कथा का हिस्सा नहीं।

यहाँ हनुमान सीता माता के निष्कासन के लिए राम के सामने अपना विरोध जताते हैं और उन्हें राजधर्म और निजधर्म की याद दिलाते हैं। यहाँ यह कथा अधुनातन सन्दर्भों में गहरे स्तर पर राजनीतिक हो जाती है। वैसे, मूल रामकथा में बिना कोई छेड़छाड़ किए लेखक ने आंजनेय के चरित्र को पूरी गरिमा के साथ स्थापित किया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 168P
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Editorial Review

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Giriraj Kishore

Author: Giriraj Kishore

गिरिराज किशोर

जन्म : 1937, मुज़फ़्फ़रनगर (उ.प्र.)। शिक्षा : एम.एस.डब्ल्यू.। 1995 में दक्षिण अफ्रीका एवं मॉरीशस की यात्रा। प्रकाशित कृतियाँ : ‘बा’, ‘लोग’, ‘चिड़ियाघर’, ‘जुगलबन्दी’, ‘दो’, ‘तीसरी सत्ता’, ‘दावेदार’, ‘यथा-प्रस्तावित’, ‘इन्द्र सुनें’, ‘अन्तर्ध्वंस’, ‘परिशिष्ट’, ‘यात्राएँ’, ‘ढाईघर’, ‘गिरमिटिया’ (उपन्यास); ‘नीम के फूल’, ‘चार मोती बेआब’, ‘पेपरवेट’, ‘रिश्ता और अन्य कहानियाँ’, ‘शहर-दर-शहर’, ‘हम प्यार कर लें’, ‘गाना बड़े गुलाम अली खाँ का’, ‘जगत्तारणी’, ‘वल्दरोजी’, ‘आन्द्रे की प्रेमिका और अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘नरमेध’, ‘घास और घोड़ा’, ‘प्रजा ही रहने दो’, ‘जुर्म आयद’, ‘चेहरे-चेहरे किसके चेहरे’, ‘केवल मेरा नाम लो’, ‘काठ की तोप’ (नाटक); ‘ग़ुलाम-बेगम-बादशाह’ (एकांकी-संग्रह); ‘कथ-अकथ’, ‘लिखने का तर्क’, ‘संवाद सेतु’, ‘सरोकार’ (निबन्‍ध-संग्रह)। सम्मान : हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश का नाटक पर 'भारतेन्दु पुरस्कार’; मध्य प्रदेश साहित्य परिषद का ‘परिशिष्ट’ उपन्यास पर 'वीरसिंह देव पुरस्कार’; उत्तर प्रदेश हिन्दी सम्मेलन द्वारा 'वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक’; 1992 का 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार’; 'ढाईघर’ के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'साहित्य भूषण सम्मान’; ‘महात्मा गांधी सम्मान’, हिन्दी संस्थान, उत्तर प्रदेश; 'व्यास सम्मान’, के.के. बिड़ला न्यास, नई दिल्ली; 'जनवाणी सम्मान’, हिन्दी सेवा न्यास, इटावा। निधन : 9 फरवरी, 2020

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